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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
आता है तब तुरन्त पीछे हट जाते हैं। उन्हें सामायिक करने के लिए कहो तो कहेंगे-बैठे-बैठे कमर दुखने लगती है, पौषध को कहा जाय तो जमीन चुभती है बिना रुई भरे गद्दे के, और उपवास आयंबिल होता नहीं क्योंकि न भूखा रहा जाता है और न ही घी, दूध, दही और मीठे के अभाव में रूखा-सूखा खाया जाता है । ऐसी स्थिति में मोक्ष की प्राप्ति करना संभव है क्या ?
कवि ने कहा है-अरे जीव ! तूने तो नरक के दुःख भी अनन्तों बार सह लिये हैं फिर उसके मुकाबले में धर्म-ध्यान या तप से होने वाले ये तुच्छ परिषह क्या मूल्य रखते हैं जो तुझसे नहीं सहे जाते ? तनिक विचार करके देख कि अब तक जो भव्य आत्माएँ सम्पूर्ण परिषहों को सहन करके संयम की दृढ़ साधना कर चुकी हैं, क्या उनके शरीर तेरे जैसे नहीं थे ? ।
धर्म के लिए तो गुरु गोबिन्दसिंह के दो छोटे-छोटे बच्चे हँसते हुए स्वयं ही दीवार में चुने जाने को तैयार हो गये थे। छोटा सा बालक ध्र व जो आज ध्र वतारे के रूप में माना जाता है अपनी सौतेली माता के तनिक से तिरस्कार पर ही घोर तपस्या में लीन हो गया था । भगवान की गोद
आपने ध्रुव की कहानी अवश्य ही पढ़ी होगी। एक बार जब वह अपने पिता की गोद में बैठने जा रहा था, उसकी सौतेली माँ ने सौतेले भाई को पिता की गोद में बैठाया और उसका अनादर करते हुए कहा-“तुम यहाँ नहीं बैठ सकते, तुम केवल आधा सेर अनाज के अधिकारी हो।" ___बालक ध्रव को बात लग गई और उसने सोचा "अब तो मैं भगवान की गोद में ही बैठेंगा।"
पर भगवान की गोद में बैठना क्या सरल है? उसके लिए निराली ही भक्ति और साधना चाहिये । भगवान की भक्ति करने वाला भगवान के प्रेम में ऐसा गर्क हो जाता है कि उसे संसार की अन्य कोई वस्तु दिखाई ही नहीं देती। जिस प्रकार पतिंगा दीपक से प्रेम करने पर अन्य किसी की ओर नहीं देखता केवल उस पर मंडराता हुआ अपने प्राण त्याग देता है, इसी प्रकार ईश्वर में लौ लगाने वाले का हाल होता है । उर्दू कवि जौक ने कहा भी है--
कहा पतंग ने यह दारे शमा पर चढ़कर ।
अजब मजा है, जो मर ले किसी के सर चढ़कर। तो मैं ध्र व के विषय में कह रहा था कि उस छोटे से बालक ने जब यह
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