________________
अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता
१२७
आदि के रहस्यों को पूर्णतया समझ कर पाप-मुक्त रहने का प्रयत्न करना चाहिए। कवि ने अंत में कहा है - तज दे बातों की सफाई, तज दे हाथों की सफाई,
करले अंदर की सफाई, धन मुनि सो रहा है क्यों? धन मुनि कह रहे हैं- "भाई ! सौ बात की बात सिर्फ एक ही है कि तू अपने अंतर की सफाई करले और वह तभी हो सकेगी जबकि अपनी बातों की और हाथों की सफाई को छोड़ देगा।" . अनेक व्यक्ति अपने आपको धर्मपरायण साबित करने के लिए नाना प्रकार के तर्क-वितर्क लोगों के सामने रखते हैं । पर वे यह नहीं सोचते कि बातों के भुलावे में लोग भले ही आ जायें पर कर्म कभी नहीं आते । दर्पण के समक्ष खड़े होने पर व्यक्ति की आकृति पूर्णतया स्पष्ट दिखाई दे जाती है और उसके लिए फिर किसी भी प्रकार के तर्क करने की आवश्यकता नहीं रहती कि- "मेरा चेहरा ऐसा नहीं वैसा है या आँख-नाक इस तरह के नहीं अपितु कुछ और तरह के हैं।"
इसी प्रकार पाप भी जब मन, वचन, शरीर आदि से होते हैं, तब दर्पण में प्रतिभासित चेहरे के समान ठीक वैसे ही कर्म-बंधन होते चले जाते हैं । उनके विषय में किसी के लाख प्रकार से समझाने पर और कुतर्क करने पर भी कोई लाभ नहीं होता। भले ही मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकार से अपने आपको समझा ले और दूसरों को भी अपनी लच्छेदार बातों से भुलावे में डाल दे, किन्तु कर्म किसी के बहकाने में नहीं आते और अपना कार्य किये जाते हैं। इसलिए जवान से सफाई देने से कोई लाभ नहीं है । अत: इस निरर्थक कार्य का त्याग कर देना चाहिए।
दूसरी बात हाथ की सफाई की है । लोग व्यापार करते हैं और कोई वस्तु तौलते समय तखड़ी (तराजू) की डंडी को हाथ के इशारे से इधर-उधर करते हुए चीज कम तोल देते हैं । कपड़े के व्यापारी गज से कपड़े का नाप करते समय जल्दी-जल्दी हाथ चलाकर दो-चार इंच कपड़ा कम दे देते हैं। __ किन्तु इससे क्या लाभ होना है ? खरीददार की आँखों में भले ही हाथ की सफाई में चतुर व्यापारी धूल झोंक दे, किन्तु कर्मों की पैनी आँखों से वह नहीं बच सकता । वे तो व्यापारी के बिना जाने ही पाप के खाते में ज्यों की त्यों दर्ज हो जाएँगे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org