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भूमिका
आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी इस युग के एक जिनके आलोक में समस्त जैन शासन विश्व को अहिंसा, फैला रहा है । वे एक उत्कृष्ट साधक, मनीषी और तत्त्ववेत्ता हैं - जिनके विचारों में आज के उलझे हुए मष्तिस्क को सही दिशा में आने की प्रेरणा है । "आनन्द-प्रवचन" में उनके कुछ प्रवचन संग्रहीत हैं ! सन्तों की आध्यात्म-साधना, गूढ़ ज्ञान और निर्मल चारित्र न चर्म चक्षुओं से देखे जा सकते हैं और न उन्हें कोई मूर्तिमान आकार ही दिया जा सकता है । उनकी अमृतमयी वाणी का सिर्फ श्रवण किया जा सकता है । जिसमें उनके उज्जवल ज्ञान दर्शन और चारित्र की त्रिवेणी प्रवाहित होती रहती है । देशकाल की सीमाओं से मुक्त वह शाश्वत चिरन्तन और चिर-नूतन होती है । " आनन्द प्रवचन" में भी आचार्य श्री की वही विचारधारा है, जिसमें आज के भौतिकवादी युग में महावीर वाणी का आध्यात्मिक सन्देश निहित है । हमें अपने महान् धर्म, साहित्य और संस्कृति की झांकी भी उनमें मिलती है । जिन्हें हम भुलाकर खो बैठे हैं ।
धर्म, बुद्धि, तर्क और चिन्तन का विषय नहीं है । दर्शन और तर्कशास्त्र अपने-अपने सिद्धान्तों में वस्तुतत्व की परिभाषा करते आए हैं और बुद्धि उनके विषय में सोचती हुई भ्रमित हो रही है । आवश्यकता है आस्था, श्रद्धा और विश्वास की, जो धर्म को ग्रहण करे -- अन्तर्मन से स्वीकार करे और उसे आत्मसात कर ले । संसार के दुखों के निवारण की यही एक अमृतोपम औषधि है । धर्म और धर्म के सिद्धान्तों को सहज स्वाभाविक रूप से जीवन में उतारने का सन्देश ही " आनन्द-प्रवचन" में समाहित है ।
महान प्रकाश स्तम्भ हैं । सत्य एवं प्रेम का सन्देश
मेरे लिए यह भी हर्ष की बात है कि इन प्रवचनों का सम्पादन मेरी बड़ी बहन सुश्री कमला जैन 'जीजी' के द्वारा हुआ है । " आनन्द प्रवचन" के पिछले भागों की तरह ही पाठकगण इस नूतन कृति का स्वागत करेंगे । ऐसी आशा है ।
- विज्ञान भारिल्ल
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