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प्रस्तुत कृति : विद्वानों की दृष्टि में "आनन्द-प्रवचन' में श्रद्रय महामहिम आचार्य देव श्री आनन्दाजी म. के धीरगम्भीर वचनों का सुन्दर प्रवाह 'प्रवचन' के रूप में प्रस्तुत हुआ है। वे आकृति से भी महासागर की तरह प्रशान्त, कान्त प्रतीत होते
और प्रकृति से भी । उनके मन की निर्मरमता, सरलता, सौम्यता और भद्रता उनकी
वाणी में पद-पद पर प्रस्फुटित होती पाश्मिक्षित
लगता है, आचार्य श्री जिव्हा से नही, हृदय से बोलते हैं, इसलिए उनकी वाणी मन पर सीधा असर करती है। ___उनके अन्तर में वैराग्य की जो पावन धारा बह रही, वाणी में उसका शतिल-स्पर्श सहज अनुभव किया जा सकता है।
-उपाध्याय अमर मुनि
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