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अनुक्रमणिका
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१. कहो क्या रे पछी तरशो ? २. धर्मो रक्षति रक्षितः ३. पराये दुःख दूबरे ४. चार दुर्लभ गुण ५. देवत्व की प्राप्ति ६. चिन्तामणि रत्न, चिन्तन ७. ब्रह्मलोक का दिव्य द्वार : ब्रह्मचर्य ८. आगलो अगन होवे आप होजे पाणी ६. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् १०. सबके संग डोलत काल बली ११. याचना परीषह पर विजय १२. याचना-याचना में अन्तर १३. हानि-लाभ को समान मानो १४. अलाभो तं न तज्जए १५. शरीरं व्याधि-मन्दिरम् १६. समाज बनाम शरीर १७. यह चाम चमार के काम को नाहीं
१८. अचेलक धर्म का मर्म १६-२०. पास हासिल कर शिवपुर का
२१. तप की ज्योति २२. क्यों डूबे मँझधार २३. न शुचि होगा यह किसी प्रकार २४. अस्नान व्रत २५. आर्यधर्म का आचरण २६. पौरुष थकेंगे फेरि पीछे कहा करि है २७. चार दुष्कर कार्य २८. सम्मान की आकांक्षा मत करो २६. साधक के कर्तव्य
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