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आनन्द-प्रवचन भाग-४
सुभट यानी वीर योद्धा की शरण ले ली है ताकि अब पुनः लूटा जाने का भय न रहे और धर्म-रूपी योद्धा मेरे साथ रहकर मेरी रक्षा करता है। ___ आप जानते ही है बंधुओ कि अगर किसी निर्जन मार्ग से आप गुजर रहे हों, और साथ में आपके पास धन हो तो चोर-डाकुओं का भय उस मार्ग पर आपको बना रहेगा । और ऐसे मार्ग पर राही चोरों के द्वारा लूटे भी जाते हैं ऐसे उदाहरण आए दिन आपके सामने आते हैं। मुक्ति का मार्ग भी ऐसा ही विकट मार्ग है । जीवात्मा अनंतज्ञान, अनंतदर्शन. अनंतचारित्र की सम्पत्ति लेकर इस मार्ग पर बढ़ता है किन्तु मार्ग में क्रोध, मान, माया, लोभ एवं मोह रूपी क्रूर लूटेरे ताक लगाए बैठे रहते हैं और मौका पाते ही उसे लूट लेते हैं । इसीलिए मुमुक्षु जीव अपनी पूर्व-कृत भूल से सीख लेकर पुनः उस मार्ग पर अकेला नहीं चलता अपितु धर्म-रूपी सुभट को अपना पहरेदार और रक्षक बनाकर चलता है । उसकी प्रभु से प्रार्थना है
पहुंचा दो मोक्ष ठिकाना, नहिं होय फिर यहाँ आना ।
इतना सा हुकुम फरमाना, कर्मों से पड़ा है पाना ॥ प्रार्थना है कि हे प्रभो ! मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करो ताकि मैं समस्त विषय-वासनाओं और विकारों को जीतकर कर्मों से मुकाबला कर सक। अर्थात् उन्हें अपनी आत्मा पर हावी न होने दूं। धर्म-रूप सुभट की भी इसीलिए मैंने सहयता ली है कि वह ढाल बनकर मेरे सामने आ जाय और कर्म-वैरी का कोई भी आत्म-गुण-नाशक वार मेरी आत्मा तक न पहुँच सके । अगर मेरी यह मोर्चेबन्दी सफल हो गई तो फिर मैं अपने मोक्ष-रूपी गन्तव्य स्थान तक पहुँच जाऊँगा और फिर मुझे कभी भी पुनः यहाँ नहीं आना पड़ेगा । इसलिए भगवान् ! मुझे ऐसा वरदान दो कि
सब माल मेरा मिल जावे, प्रभु अनिलरिख यह ध्यावै ।
तब होय काज मनमाना, कर्मों से पड़ा है पाना ।। श्री अनिलऋषि जी महाराज कह रहे हैं-हे प्रभो ! आपकी कृपा दृष्टि हो जाए तो मैं धर्म-रूपी योद्धा की सहायता से अपना ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र्य रूप-धन पुनः प्राप्त करलू। मैं किसी अन्य की वस्तु लेना नहीं चाहता केवल अपनी गई हुई सम्पत्ति ही पुनः प्राप्त करना चाहता हूं। उस सम्पत्ति की अधिकारिणी मेरी आत्मा है। मेरी आत्मा ही असली साहूकार है जिसका धन सम्यकज्ञान, सम्यकदर्शन एवं सम्यक्चारित्र है अतः ये अमूल्य वस्तुएं उनके असली मालिक या साहूकार को मिल जानी चाहिए।
जिस दिन ऐसा हो जाएगा, मैं समझूगा कि मेरा मनचाहा सिद्ध हो गया
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