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सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्
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साथ होना जरूरी है, उस धर्म का नाम चाहे कोई भी क्यों न हो । और ये तीनों चीजें ही सम्यक् ज्ञान, सम्यक्दर्शन एवं सम्यक् चारित्र कहलाती हैं; जिनको हमारा धर्म मुक्ति का मार्ग कहता है
सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्राणि
मोक्षमार्गः
सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र मोक्ष के मार्ग हैं ।
तो बंधुओ, जिस प्रकार आप किसी चौराहे पर लगे हुए मील के पत्थर से जानकारी हासिल करते हैं कि कौन सा मार्ग किस शहर को जाता है ? और शहर कितनी दूर है ? और तब अपने गंतव्य की और बढ़ते हैं ।
इसीप्रकार शास्त्र हमारे लिए चौराहे पर खड़े मील के पत्थर का काम करते हैं । यह मानव जीवन भी एक चौराहा है और यहाँ से जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव, इन चारों गतियों में जा सकता है । किन्तु कौन सा मार्ग किस गति में पहुंचाता है, यह मील के पत्थर के समान हमारे शास्त्रों में स्पष्ट और विस्तार से बताया गया है । आप किसी नये प्रदेश में किसी चौराहे पर पहुंच जायं, पर वहाँ अगर संकेत से बताने वाला पत्थर न हो तो किसी भी प्रकार आप नहीं जान सकेंगे कि कौन सा मार्ग किस शहर की ओर जाता है ?
ठीक इसी प्रकार मानव-जीवन रूपी चौराहे पर आप खड़े हैं, पर किस ओर आपको बढ़ना चाहिए यह आप नहीं समझ सकते । केवल जिनेश्वर भगवान - प्ररूपित शास्त्र ही आपको यह बता सकते हैं कि कौन सा मार्ग पाप का है जो आपको नरक या तियंच गति की ओर पहुंचा देगा, तथा कौन सा धर्म-मार्ग है जो स्वर्ग और मोक्ष की ओर ले जाएगा। इतना ही नहीं, शास्त्र आपको इससे भी अधिक जानकारी देंगे कि कौन सा मार्ग आपके लिये गृहणीय है, उसमें कौन-कौन से अवरोध हैं और उन अवरोधों से किस प्रकार बच कर आप निकल सकते हैं ? संक्ष ेप में शास्त्रों के समान अन्य कोई भी महत्त्वपूर्ण वस्तु इस संसार में नहीं है, जो आपके महान् उद्देश्य की सिद्धि कर सके । इसीलिये कहा जाता है—
"सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्"
प्राणीमात्र के लिये सर्वश्र ेष्ठ आंख सात्विक धर्म - शास्त्र ही हैं— क्योंकि शास्त्रों से ही विश्व की तीनों काल की घटनाओं को जाना जा सकता है ।
वस्तुतः अपने शरीर में रहे हुए दोनों नेत्रों से तो आप इस लोक की सम्पूर्ण वस्तुओं को भी नहीं देख सकते । केवल कुछ दूर तक के दृश्यमान पदार्थों का ही अवलोकन कर सकते हैं और उसपर भी जरा सा कुछ अवरोध
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