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सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्
धर्मप्रेमी बंधुओ माताओ एवं बहनो !
हमारा विषय यह चल रहा है कि सम्यकज्ञान, सम्यकदर्शन, सम्यक्चारित्र और सम्यकतप, ये चारों मोक्ष के साधन हैं। इन चारों में से अगर एक भी मर्यादित नहीं रहे तो हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। उसी प्रकार, जिस प्रकार आप हलुआ बनाते हैं तो उसके लिए आटा, शक्कर, घी और पानी ये चारों ही उसी प्रमाण में डालते हैं जिस प्रमाण से डालना चाहिए। इन वस्तुओं में एक भी वस्तु अगर न रही या न्यून मात्रा में रही तो आपका पकवान रुचिकर नहीं बनेगा।
सम्यक्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का भी यही हाल है। ये चारों सही मात्रा में होने पर ही आप मोक्ष रूपी फल की प्राप्ति कर सकते हैं और आत्मा के लिए कल्याणकारी स्थिति बना सकते हैं। किन्तु इनमें से किसी का भी अभाव हो तो हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।
कल मैंने आपको ज्ञान के विषय में बताया था कि भौतिक अथवा व्यावहारिक ज्ञान कितना भी हासिल क्यों न कर लिया जाय वह इहलोक में ही उपयोगी बनेगा, परलोक में वह आपका तनिक भी सहायक नहीं बन सकता। किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान आपको इस लोक और परलोक दोनों में लाभकारी सिद्ध होगा। कहा भी है
_ "ज्ञानं सर्वार्थसाधकम् ।” सभी प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति में ज्ञान ही साधक है।
तो ऐसा ज्ञान कहाँ प्राप्त होगा ? इस विषय में भी कल कहा गया था कि आत्म-कल्याणकारी, यानी आध्यात्मिक ज्ञान धर्म शास्त्रों से प्राप्त हो
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