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उत्तम पुरुष के लक्षण
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अगर व्यापार में घाटा हुआ तो हम वहन करेंगे पर नफा होने पर सबको हिस्सा मिलेगा।"
कितना बड़ा हृदय होता था उन सार्थवाहों का ! पर आज सार्थवाह कोई नहीं है । सभी स्वार्थवाह हो गए हैं। गरीबों को लेकर चलना और अपने व्यापार में हुए नफे का भाग देना तो दूर, वे गरीबों को खाने के लिये दो पैसे तथा तन ढकने के लिए एकाध वस्त्र देने की भी परवाह नहीं करते । भले ही अपने घर शादी-ब्याह अथवा अन्य कोई अवसर होने पर हजारों ही नहीं लाखों रुपये भी खर्चा कर देते हैं किन्तु गरीबों के लिये उसका शतांश भी उनसे खर्च नहीं किया जाता। इसी लिये एक श्लोक में कहा गया है
"शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पंडितः ।
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा ।', अर्थात्--सैकड़ों व्यक्तियों में एक शूरवीर निकल सकता है और हजारों में एक सच्चा पंडित । दस हजार में एक वक्ता हो सकता है पर दाता तो इतनों में से भी हो या न हो कुछ कहा नहीं जा सकता।
इसीलिये हमारे शास्त्र कहते हैं कि भाग्य से हमें मनुष्य जन्म प्राप्त हो गया है और धर्म के लक्षण समझने की बुद्धि भी मिल गई हो तो इसका उपयोग करते हुए हमें धर्म को अपनाना चाहिए तथा अपनाने के बाद उसे स्थिर और मजबूत बनाने के लिये दया एवं दान का अवलंबन लेना चाहिये। इनके द्वारा ही धर्म स्थिर होता है तथा उसकी प्रभावना होती है। ..
क्रिश्चियन धर्म का प्रसार इसीलिये अधिक हुआ, क्योंकि इन लोगों ने करोड़ों रुपये गरीबों में बाँटे और उन्हें भोजन, वस्त्र आदि अनेक प्रकार की वस्तुएँ आवश्यकतानुसार प्रदान की। पर हमारे समाज में इतना प्रयत्न और परिश्रम करने वाले व्यक्ति कहाँ हैं ? वे परिश्रम करते जरूर है पर केवल अपनी सुख-सुविधाओं की पूर्ति करने के लिये और अपनी तिजोरियाँ भरने के लिये, और दान के रूप में अगर कुछ देते हैं तो अपना नाम दानदाताओं की लिस्ट में लिखवा कर नामवरी पाने के लिये । वे भूल जाते हैं कि दान तब दान कहलाता है, जबकि दाहिना हाथ जो कुछ दे उसे बाँया हाथ भी न जान सके । इसप्रकार दिया हुआ दान ही शुभ फल प्रदान करता है, ख्याति प्राप्ति के लिये दिया हुआ नहीं। दान का महत्व मुस्लिम ग्रंथ भी बहुत अधिक मानते हैं । वे कहते हैं
"सखावत कुनद नेक वस्त हख्तियारके मर्द अज़ सखावत कुनद बख्तियार ।
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