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छः चचल वस्तुएं
१८७ नवाब ने फ़कीर को पुनः राजदरबार में देखा तो बड़ा चकित हुआ और उससे पूछ लिया-क्यों साईं बाबा ! वह तरबूज खाया था क्या ?"
"नहीं हुजूर ! मैंने तो उसे दो पैसे में किसी और फकीर को बेच दिया था।"
सुनकर नवाब आसन से उछल पड़े और बोले-अरे ! तुम तो बड़े वदनसीब निकले । उस तरबूज में तो जवाहिरात भरे हुए थे। .
यह सुनकर फकीर ने तो सिर पीट लिया और नवाब को अपने अहंकार पर बड़ा दुःख हुआ । उसने फकीर से कहा- "बाबा ! अब कभी झूठी हाँक मत लगाना । क्योंकि जिसे खुदा देना नहीं चाहता उसे मैं किस प्रकार दे सकता हूं ? लक्ष्मी बड़ी चंचल है अतः उसी के पास जाकर रहेगी जिस के पल्ले में पुण्य होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो तुम तो लाखों का धन दौ पैसे में कैसे दे देते ?
उदाहरण से स्पष्ट है लक्ष्मी बड़ी चपल है और बिना पुण्य के लाख प्रयत्न करने पर भी टिक नहीं सकती। सागर में जिस प्रकार तरंग उठती है और विलीन हो जाती है, उसी प्रकार लक्ष्मी आती है और चली जाती है फिर भी मनुष्य न जाने क्यों माया के लिए पागल बना रहता है। वह जानता है कि इस संसार से मुझे खाली हाथ आना है, साथ में धन-दौलत नहीं, केवल पाप-पुण्य जाता है । फिर भी वह धन के लिए अठारहों पापों का सेवन करने से नहीं चूकता । धन के लिए वह चोरी करता है, झूठ बोलता है, हत्या करता है अधिक क्या कहा जाय कोई बड़ा या छोटा पाप करने से भी नहीं हिचकता। पर जिस चंचल लक्ष्मी के लिए वह यह सब करता है, क्या उसके पास वह टिकी रहती है ? नहीं, वह या तो उसके जीवित रहते ही किसी दूसरे के हाथों में चली जाती है या फिर मरने पर स्वयं ही यहाँ पड़ी रहती है। अतः उसके लिये गर्व करना और अनेकानेक पापों का बंधन करना व्यक्ति की बड़ी भारी भूल और अज्ञानता है। (६) स्वामित्व __स्वामित्व माने अधिकार । यह भी चंचल है । सत्ता कभी एक के हाथों में नहीं रहती । संसार में बड़े-बड़े राजा-महाराजा और बादशाह हुए हैं जिनका चंद क्षणों, मिनिटों या घंटों में ही तख्ता बदल गया है। इतिहास हमें ऐसे अनेक उदाहरण बताता है, जिनमें सत्ता के लोभी व्यक्तियों ने भाई, बाप या मित्र को षड्यन्त्र रचकर कत्ल किया और राज्य का स्वामित्व अपने हाथ में ले लिया । एक राजा का दूसरे पर आक्रमण करके उसे हराना और राज्य को अपने हस्तगत कर लेने के उदाहरण तो इतने हैं कि जिनकी गणना भी नहीं हो
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