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तुलसी ऊधंवर के भये, ज्यों बंधूर के पान
१३१ गधा कह रहा है-“हे नरश्रेष्ठ ! आप मुझे चाहे बुद्धिहीन कह लें पर गुणहीन न कहें । गुणहीन के लिये तो मेरी उपमा कदापि नहीं दी जा सकती क्योंकि मुझमें तो कई गुण हैं।" .... .... ____"सर्वप्रथम तो मेरी यह विशेषता है कि मैं असह्य शीत, ग्रीष्म और वर्षा सभी को सहन करता हूँ। काम करता हूँ तब भी इन्हें सहन करना पड़ता है और घर पर बँधा रहता हूँ तब भी । कोई भी मेरा मालिक मुझे सर्दी गर्मी से बचाने के लिये किसी तरह का साधन करने की परवाह नहीं करता । क्या निर्गुणी इतना सहनशील होता है ? गुण भले ही उसमें नहीं होंगे पर सर्दी, गर्मी आदि से बचाव तो वह करेगा ही उसमें सहन शक्ति मेरे जैसी नहीं होती।" ___ "दूसरे, मेरे जितना बोझा क्या निर्गुणी ढो सकता है ? मैं दिन भर अपनी पीठ पर पड़ी हई गोनी में भर-भरकर मिट्टी, बालू रेत या कंकर ढोता हूँ। कितना भारी होता है यह सब ? फिर भी अपने मालिक की सहायता करने के लिये अपनी शक्ति से अधिक बोझ भी निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचाकर ही दम लेता हूँ।" ___ "तीसरी बात यह है कि मेरा मल एक तो औषधि के काम आता है। उसकी घंटी देने से शरीर की कई बीमारियाँ नष्ट हो जाती हैं। और कच्चे घरों की दीवालों और जमीनों को छापने के लिये भी उसे मिट्टी में मिलाते हैं जिससे मिट्टी बड़ी मजबूत हो जाती है तथा चूने को भी मात करती है।"
"मेरा चौथा गुण यह है कि मैं परदेश जाने वाले को अच्छा शकुन बताता । आप लोग कहते ही हैं कि किसी दूसरे गाँव जाने पर अगर दाहिनी तरफ गर्दभ बोले तो शुभ होता है यानी जिस कार्य के लिये यात्रा की जाती है वह सफल होती है। इस प्रकार किसी कार्य के होने और न होने की सूचना मैं तुरन्त दे देता हूँ । अर्थात्-मैं दाहिने या बाँयें बोलकर बता देता हूँ कि आपके निर्धारित कार्य में लाभ होगा या हानि । पर गुणहीन के बोलने से क्या लाभ है ? वह चाहे जितना बोलता रहे कोई उसकी परवाह नहीं करता।"
___ "और इन सबके अलावा भी मेरा एक बड़ा भारी गुण है कि मैं अपने इतने परिश्रम का और अपने गुणों का कभी रंच मात्र भी घमंड नही करता। मेरा मालिक मेरे खाने पीने की भी परवाह अधिक नहीं करता, घास फूस भी कभी लाकर नहीं देता। छोड़ देता है कि खालो, जो मिले, पर मैं उसके लिये भी क्रोध नहीं करता । अपनी स्थिति से पूर्ण संतुष्ट रहता हूँ।
इस प्रकार भाई ! मुझमें तो अनेक गुण हैं जो कि निर्गुणी व्यक्ति में नहीं
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