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पाप-नाशक तप
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जितना बन सके उतना ही सही पर तप करना अवश्य चाहिये । तप बारह प्रकार का होता है, जिनमें से छः आभ्यंतर और छः बाह्य तप कहलाते हैं।
अनशन, उनोदरी, भिक्षाचर्या, रस परित्याग, कायक्लेश एवं प्रति संलीनता ये बाह्य तप हैं तथा
प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग ये आभ्यंतर तप होते हैं।
इनके विषय में विस्तृत रूप से अवसर होने पर बताया जाएगा। आज तो आपको जो कुछ बताया गया है इसी पर अमल करने का प्रयत्न करें तो भी आत्म-विकास की ओर बढ़ सकेंगे ।
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