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ग्रन्थमाला की ओर से
वर्णावाणी के प्रथम संस्करण को श्री साहित्य साधना समिति जैन विद्यालय काशी को प्रस्तुत करने का सुअवसर मिला था। यह उसका परिवर्धित और परिवर्तित दुसरा सस्करण है । इसे प्रस्तुत करते हुए श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला गौरव का अनुभव करती है।
यह आवश्यक था कि इसके इस संस्करण को भी प्रस्तुत करने का अवसर उसी संस्था को दिया जाता, किन्तु अधिकतर विद्वानों और समाज की यह राय थी कि वर्णी-साहित्य का प्रकाशन वर्णी-ग्रन्थमाला से ही होना चाहिये । उनकी इस इच्छा को ध्यान में रखकर ही वर्णीग्रन्थमाला ने इस ओर ध्यान दिया है। मुझे प्रसन्नता है कि इस कार्य में हमें सबका सहयोग मिला है।
प्रथम संस्करण से यह संस्करण बहुत बड़ा है। इसमें कई विषय बढ़ाये गये हैं और अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन भी किये गये हैं। पूज्य श्री वर्णीजी महाराज के अनेक लेख और प्रारम्भिक काल में उनके द्वारा लिखे गये अनेक दोहे भी इसमें संग्रहीत हैं। इससे प्रस्तुत संस्करण की उपयोगिता और भी अधिक बढ़ गई है।
पूज्य श्री वर्णीजी महाराज का जीवन बाल्यकाल से ही अलौकिक और शिक्षाप्रद रहा है । उन्होंने अपने जीवन में जो महान् कार्य किये हैं उनकी उपमा जैन समाज में अन्यत्र मिलना कठिन है। उनमें वे सभी गुण विद्यमान हैं जो एक सन्त में होने चाहिये । वे इस युग के प्रवर्तक हैं। जैसे उन्होंने अपनी प्रतिभा, विद्वत्ता, त्याग और साधुवृत्ति द्वारा मार्गदर्शन किया है वैसे ही उन्होंने अपनी दिव्य वाणी द्वारा भी संसार
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