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वर्णी-वाणी
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अहिंसा--पृ० १७६, वा० ३, जीवन में आये हुए विकारों को दूर करना।
सम्प्रदायवादी-पृ० १८०, वा० ४, विवक्षित तत्त्वज्ञान के बहाने कल्पित की गई रेखाओं को धर्म बतलानेवाले । __ तत्त्वदृष्टि-पृ० १८०, वा० ४, वास्तव दृष्टि । सुधासीकर-- .
निवृत्तिमार्ग-पृ० १६७, वा० २०, जीवन में आये हुए विकारों के त्याग का मार्ग।
शुद्धोपयोग-पृ० २००,वा० ४२ रागद्वेष रूप प्रवृत्ति से रहित होकर जड़ चेतन प्रत्येक पदार्थ को मात्र जानना शुद्धोपयोग है।
ब्रह्मचर्य-पृ० २०१, वा० ४८, स्त्री मात्र से दृषित चित्तवृत्ति को हटाकर उसे आत्मस्वरूप के चिन्तन में लगाना ब्रह्मचर्य है ।
क्षमा-पृ० २०३, वा० ६७, क्रोध का त्याग या अवैरभाव ।
मनोनिग्रह-पृ० २०४, वा० ७६, विषयों से हटाकर मनको अपने आधीन कर लेना। दैनंदिनी के पृष्ठ--
निरीहवृत्ति-पृ० २१५, वा० ६५, सांसारिक अभिलाषाओं के त्याग रूप परिणति ।
पर्याय-पृ० २१६, वा०६५, द्रव्य की अवस्था ।
कर्म फल चेतना-पू० २२, वा० ६६, ज्ञान के सिवा अन्य अनात्मीय कार्यो का अपने को भोक्ता अनुभव करना और तद्र प हो जाना कर्मफल चेतना है।
कमचेतना-पृ०२२१, वा०६५, ज्ञान के सिवा अपने को अन्य अनात्मीय कार्यो का कर्ता अनुभव करना कर्मचेतना है। संसार--
अमूर्त-पृ० २२५, पंक्ति ५, रूप, रस, गन्ध आदि पुद्गलधों से रहित ।
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