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वर्णी-वाणी
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४. दस बजे निर्द्वन्द्व होकर शान्त चित्त से भोजन करें । भोजन सादा और सात्विक हो । लाल मिर्च आदि उत्तेजक, रबड़ी मलाई आदि गरिष्ठ एवं अन्य किसी भी तरह के चटपटे पदार्थ न हों।
५. भोजन के बाद आधा घण्टे तक या तो खुली हवा में पर्यटन करें या पत्रावलोकन आदि ऐसा मानसिक परिश्रम करें जिसका भार मस्तिष्क पर न पड़े। बाद में अपने अध्ययनादि कार्य में प्रवृत्त हों।
६. शायंकाल चार बजे अन्य कार्यों से स्वतन्त्र होकर शौचादि दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के पश्चात् ऋतु के अनुसार पाँच या साढे पाँच बजे तक सूर्यास्त के पहिले पहिले भोजन करें।
७. भोजन के पश्चात् एक घण्टे खुलीहवा में पर्यटन करें तदनन्तर दस बजे तक अध्ययनादि कार्य करें।
८. दस बजे सोने के पूर्व ठण्डे जल से घुटनों तक पैर और ऋतु अनुकूल हो तो शिर भी धोकर स्तोत्र पाठ या भगवन्नास्मरण करके शयन करें।
६. सदा अपने कार्य से कार्य रखें व्यर्थ विवाद में न पड़े।
१०. अपने समय का एक एक क्षण अमूल्य समझ उसका सदुपयोग करें।
११. मनोवृत्ति दूषक साहित्य, नाटक, सिनेमा आदि से दूर रहें।
१२. दूसरों की माँ बहिनों को अपनी माँ बहिन समझे।
१३. “सत्संगति और विनय जीवन की सफलता का अमोघ मन्त्र है" इसे कभी न भूलें ।
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