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त्याग
१०. अधिक संग्रह ही संसार का मूल कारण है।
११. घर को त्याग कर जो मनुष्य जितना दम्भ करता है वह अपने को प्रायः उतने ही जघन्य मार्ग में ले जाता है। अतः जब तक आभ्यन्तर कषाय न जावे तब तक घर छोड़ने से कोई लाभ नहीं।
१२. उस त्याग का कोई महत्व नहीं जिसके करने पर लोभ न जावे।
१३. त्याग कल्याण का प्रमुख मार्ग है।
१४. आवश्यकताएँ कम करना भी तो त्याग है। वाह्य वस्तु का त्याग कठिन नहीं, आभ्यन्तर कषायों की निवृत्ति ही कठिन है।
१५. जिस त्याग के करने पर भी तात्विक शान्ति का आस्वाद नहीं आता वहाँ यही अनुमान होता है कि वह आभ्यन्तर त्याग नहीं है।
१६. बाह्य त्याग की वहीं तक मर्यादा है जहाँ तक वह आत्म परिणामों में निर्मलता का साधक हो ।
१७. अपनी लालसा को छोड़ने के अर्थ जिन लोगों ने त्याग धर्म को अङ्गीकार करके भी यदि उसी त्यक्त सामग्री की तरफ लक्ष्य रक्खा तो उन्होंने उस त्याग से क्या लाभ उठाया ?
१८. मनुष्य जितने कार्य करता हैं, उन सबका लक्ष्य सुख की ओर रहता है। वास्तव में यदि विचार किया जावे तो सुखोत्पत्ति त्याग से ही होती है। इसी से धर्म का उपदेश त्याग प्रधान है। जिसने इसको लक्ष्य नहीं किया वह मार्मिक
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