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तो उसके प्रयास
बैलों को और खोजने से डर रहे थे
वह देखकर हैरान रह गयामहावीर ध्यानमग्न थे
और उसके बैल वहीं चर रहे थे !
इस संयोग ने
उसके मन में क्रूरता के विचार जगा दिये
'हो न हो चुराने के लिये
मेरे बैल इस भिक्षु ने ही रात को छिपा दिये'
क्रूरता की रस्सी से
अज्ञान ने तत्काल कोड़ा बनाया
तड़ातड़-तड़ातड़
ध्यानलीन देह पर बरसाया
जहाँ-तहाँ पड़ी
सुर्ख सेवाओं से लहू उछल आया
पर मज़ाल
कि तिल-भर काँपी हो वह काया
Kad
यह उपसर्ग आसानी से नहीं टला
स्वर्गस्थ देवेन्द्र को पता चला, देव होने का
लाभ यही तो है
कि जब-जब सज्जनता पर
अत्याचार होते हैं तो
पता लग जाता है समय रहते अन्यथा महावीर
और जाने कितने अत्याचार सहते
प्रकाश पर्व : महावीर / 70
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