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________________ Jain Education International तो उसके प्रयास बैलों को और खोजने से डर रहे थे वह देखकर हैरान रह गयामहावीर ध्यानमग्न थे और उसके बैल वहीं चर रहे थे ! इस संयोग ने उसके मन में क्रूरता के विचार जगा दिये 'हो न हो चुराने के लिये मेरे बैल इस भिक्षु ने ही रात को छिपा दिये' क्रूरता की रस्सी से अज्ञान ने तत्काल कोड़ा बनाया तड़ातड़-तड़ातड़ ध्यानलीन देह पर बरसाया जहाँ-तहाँ पड़ी सुर्ख सेवाओं से लहू उछल आया पर मज़ाल कि तिल-भर काँपी हो वह काया Kad यह उपसर्ग आसानी से नहीं टला स्वर्गस्थ देवेन्द्र को पता चला, देव होने का लाभ यही तो है कि जब-जब सज्जनता पर अत्याचार होते हैं तो पता लग जाता है समय रहते अन्यथा महावीर और जाने कितने अत्याचार सहते प्रकाश पर्व : महावीर / 70 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003981
Book TitleTirthankar Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication New Delhi
Publication Year1998
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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