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________________ उसके वनस्पति-गोम नव-देनव कर प्रभु को अपनी ओर आते मारे खुशी के लहना रहा था जंगल आज उसजे पहली बार चलते देखा था श्रमणत्व के सुमेरु को बढ़ रहा था सुमेरू साधना-पथ पर। दरिद्रता मिली अपरिग्रह से। साधना-पथ पर बढ़ते चरणों में साष्टांग प्रणत एक दीन-जर्जन वृद्ध सुमेरु के हदय-प्रदेश में । करुणा हनीतिमा बन लहराने लगी पुनः देनवा करुणा नेकपड़ों और छ के बीच जीर्ण-शीर्ण होने की होड़ पोर-पोर पर असनव्य झुर्रियों में लिनने गरीबी के मर्मातक अनुभव तमाम उम्म दु:नवों की चट्टानें तोड़-तोड़ कर ॲरवों को जेसे-तेसे मिली कुछ. नमी ज़िन्दगी-भर का दुःनव हाथ जोड़ कर बोला-"प्रभु ! आपको क्या कमी प्रकाश-पर्व : महावीर /66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003981
Book TitleTirthankar Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication New Delhi
Publication Year1998
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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