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काम कराने का रहता है जुनून
काम न होने पर
कोड़ों से ऐसे पीठते हैं उन्हें
कि देह पर जगह-जगह
छलछला आता है खून
जातिवाद का है ऐसा भयानक रोग कि शूद्रों को
मनुष्यों के पांव की जूतियां
समझते हैं लोग
उन्हें धर्म-स्थानों में नहीं जाने देते
उन की
छाँव तक पास नहीं आने देते
स्त्रियों को भी
बनाया जाता है दासियाँ
अपनी इच्छा से वे
न हँस सकती हैं न ले सकती हैं उबासियाँ
प्रकाश पर्व : महावीर /57
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उन्हें
समझा जाता है मनोरंजन का सामान फिर वे
कुओं में कूद कर क्यों न दें जान उनके लिये दिवास्वप्न है
सम्मान की जगह
कैसा समाज है यह
यह कैसा समाज है
जहाँ न्याय के नाम पर अन्याय
सदाचार के नाम पर कदाचार
और
धर्म के नाम पर अधर्म होता है हर यज्ञ में
कम से कम एक स्वस्थ पशु अपनी जान अवश्य खोता है
उसके माँस को
कहा जाता है प्रसाद
इस अधर्म का
कोई नहीं करता प्रतिवाद
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