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परिस्थितियाँ जो भी थीं महावीर ने स्वयं रचा अपना समय
कामनाओं के घोड़े कभी नहीं कभी नहीं हो सके अभय कर्म-शत्रु कह गये'महावीर के जीवन में हम तो अपने लिए स्थान ढूंढते नहे
ढूंढते रहे
ढूंढते ही रह गये।
ज्ञान है तो शोक नहीं
सोचा वर्धमान ने'यह देह प्रदान करने वाले तज गये अपनी देह
प्रत्येक देह का अवसान निश्चित हो जाता है जन्म के समय ही अपनी यात्रा के इस पड़ाव पर माता-पिता अट्ठाईस वर्ष रहे मेरे साथ इस अवसर पर एक भावना है मेरी भीउनकी यात्रा को पूर्णता मिले शीघ्र ही मैंने गर्भ में लिया संकल्प निभाया संकल्प एक और भी हैइतने अच्छे थे माता-पिता कि वही मेरे अन्तिम माता-पिता छों
प्रकाश-पर्व : महावीर /55
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