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मनुष्यता का सम्मान है नारी
जो हुआ
अवश्यम्भावी था
वत्स देश के राजा शतानीक पर ज़र जोरू जमीन का लालच हावी था उसने अंग देश के राजा दधिवाहन पर हमला कर दिया
उसकी राजधानी चम्पा को
रक्तपात और लूटपाट से भर दिया
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शतानीक विजयी हो गया
पराजित दधिवाहन
प्राण बचा कर न जाने कहाँ खो गया
रूप के लोभी एक रथी ने
लूटपाट करते हुए दधिवाहन की
पत्नी धारिणी व पुत्री वसुमती को देखा हृदय पर निवची वासना की रेखा उसने ताड़ा मौका
दोनों को
चिकनी-चुपड़ी बातों से दिया धोखा अपने रथ में बैठाकर ले चला
बीच जंगल में जाकर रोका
प्रकट कर दिया मन का पाप कहा
"मेरे हृदय देश की रानी बनें आप "
सतीत्व की प्रतिमूर्ति थी धारिणी रानी
उसने रथी की बात
किसी कीमत पर न मानी
उसे लम्पटता का एक भी अवसर न दिया
प्रकाश-पर्व: महावीर / 98
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