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अन्तत: उसने स्तुति की महावीर-साधना के आधार की अपनी पराजय स्वीकार की माना कि हिंसा का ज्वार जब चढता है तो खूब चढता है पर अहिंसा के सामने उसे झुकना ही पड़ता है संगम जाने से पहले रुका महावीर के चरणों में झुका कहा"मेरे मन में अब न कोई मान है में जान गया
मनुष्य की साधना-शक्ति देव-शक्ति से कहीं ज्यादा महान् है आप धन्य है साधनामृत से अपने व्यक्तित्व को और भनें मेंने बड़े दु:ख दिये हो सके तो मुझे क्षमा करें।"
संगम ने देवापहली बार झलकी महावीर के चेहरे पर पीड़ा की परछाई गोमावलि सिहनी ऑखें तक नम हो आई पूछा"भयानक से भयानक कष्ट में भी आप अडिग रहे अकम्प भाव से जनवार परीषठ सहे अब में पछता रहा हूँ हार मान कर जा रहा हूँ अब आप ऐसा कौन-सा दु:ला पा गये कि जिसकी अंच से आप पिघले और ऑनवों में आँसू आ गये ?"
प्रकाश-पर्व : महावीर /96 For Personal & Private use only
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