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और जवमा दक्ष के रूप मे
अब तो मैं
केवल प्रतिशोध का अर्थ हूँ
उस समय ये थे
आज में समर्थ हूँ
एक-एक तड़प का
मैंने भरपूर बदला लिया
वर्धमान ग्राम को
अस्थिग्राम बना दिया
में यहाँ के बच्चे-बच्चे में
अपान यातनाओं का विष भया नहीं भिक्षुक
इन राक्षसी लोगों को
कभी क्षमा नहीं करुगा ।"
महावीर ने क्रोध की बात सुनी मुस्कनाये
सहजता के शब्द
क्षमा की पिठुवा पर आये
"यदि एक प्रश्न का उत्तन के सको
तो अवश्य लेना बदला
खून सना कपड़ा खून से धोया जाय तो कब तक हो सकता है उजला ?"
प्रकाश-पर्व: महावीर / 81
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