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बाईस अभक्ष्य एवं रात्रि भोजन भी अनेक जीवों की हिंसा का निमित्त होने से एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुपयुक्त होने के कारण अभक्ष्य कहा गया है। रात्रिभोजन -
रात्रि, अर्थात् सूर्यास्त से लगाकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक का समय। इस अवधि में किया हुआ भोजन रात्रि भोजन के नाम से जाना जाता है। आहार कैसा हो, इसके साथ ही यह तथ्य भी बहुत महत्त्व रखता है कि आहार किस समय किया जाए। क्योंकि असमय में किया गया महान् कार्य भी निरर्थक हो जाता है। जिस प्रकार बारिश होने के बाद खेत को जोतना, सूर्योदय होने के पश्चात् दीप जलाना
और रोगी के मरण के बाद वैद्य का पहुंचना आदि व्यर्थ हैं, उसी प्रकार सूर्यास्त के बाद भोजन करना मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक –तीनों दृष्टियों से उचित नहीं है। सूर्यास्त के बाद किया गया भोजन शरीर के लिए अहितकर बन सकता है, क्योंकि भोजन पचाने में भी श्रम की आवश्यकता होती है। दिन जागरण अर्थात् श्रम करने के लिए है, तो रात निद्रा अर्थात् आराम करने के लिए है। दूसरे शब्दों में, दिन श्रम है, तो रात्रि विश्राम है।
सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण करने से शरीर को अधिक श्रम करना पड़ता है। जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश पाकर वृक्ष अपना भोजन बनातें है, कमल सूर्योदय होने पर खिलता है और सूर्य के अस्त होने पर सिकुड़ जाता है, उसी प्रकार जब तक सूर्य का प्रकाश रहता है, तब तक उसकी गर्म किरणों के प्रभाव से हमारा पाचनतन्त्र ठीक से काम करता है और सूर्य के अस्त होते ही उसकी गतिविधि मन्द पड़ जाती है, इसके साथ ही, रात्रि भोजन से जीव-हिंसा और अनेक रोगों की संभावना बढ़ जाती है, अतः रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए।
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