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________________ 42 कहा गया है - "न च कवलाहारत्वेन तस्यासर्वज्ञत्वम् कवलाऽऽहार सर्वज्ञ यो विरोधात् दिगम्बराः केवली कवलाऽऽहारवान् न भवति छद्मस्थेभ्यो विजातीयत्वात्" दिगम्बर-शास्त्र मानते हैं - केवली आहार नहीं करते और स्त्री को मोक्ष नहीं मिलता,19" जबकि श्वेताम्बर-शास्त्र कहते हैं - केवलियों के भी औदारिक-शरीर होता है और क्षुधावेदनीय-कर्म भी शेष है, इस कारण उनको भी आहार की जरूरत रहती है। इस प्रकार, केवली के आहार के संबंध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराएं एकमत नहीं हैं। ठीक उसी प्रकार, आहार के प्रकार के संबंध में भी वे परम्पराएं एकमत नहीं हैं। श्वेताम्बर-परम्परा में आहार के तीन प्रकारों का वर्णन मिलता है, वहीं दिगम्बर-परम्परा में आहार के छह प्रकारों का उल्लेख है। धवलटीका20 में सर्वप्रथम छह आहारों की कल्पना की गई है - नोकर्माहार, कर्माहार, कवलाहार, लेप्याहार, ओजाहार, और मनः आहार इससे पूर्व श्वेताम्बर मान्य आगमों में -सूत्रकृतांगसूत्र, नियुक्ति, प्रवचनसारोद्धार, बृहत् संग्रहणी आदि में तीन प्रकार के आहार का ही उल्लेख मिलता है। उनमें कहा गया है, आहार तीन प्रकार के हैं - ओजाहार, लोमाहार, प्रक्षेपाहार (कवलाहार)।" श्वेताम्बर-ग्रन्थों में कर्माहार, नोकर्माहार और मनः आहार का उल्लेख नहीं है, साथ ही लोमाहार को भी लेप्याहार कहा गया है। 19 भुंक्ते न केवली न स्त्री मोक्षमेति दिगम्बराः । 20 अत्र कवललेपोएममनः कर्माहारान् परित्यज्य नोकर्माहारो ग्राह्यः अन्ययाहार कालविरहाम्या सह विरोधात्। - षट्खण्डागम, 1/1/176 की धवलटीका 21 सरिरेणोयाहारो तयाय फासेण रोमआहारी पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायव्वो।। -प्रवचनसारोद्धार, आहार उच्छवास, गा.1180, द्वार-204 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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