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________________ 3. भयोत्पादक वचनों को सुनकर 4. भय सम्बन्धी घटनाओं के चिन्तन से यद्यपि भय–संज्ञा एक मनोभाव है, किन्तु उसके कारण आज सम्पूर्ण विश्व संकटपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है। वर्तमान स्थिति को देखें, तो भय - संज्ञा या अंधविश्वास एक विकट रूप लिये हुए है । विश्व का प्रत्येक देश जितना प्रयास एवं अर्थव्यय मानव कल्याण के लिए नहीं करता है, उतना वह सुरक्षा के लिए करता है, क्योंकि उसे अन्य शक्तिशाली देशों के आक्रमण का भय सतत बना रहता है । आज पारस्परिक अविश्वास के कारण अस्त्र-शस्त्रों की अंधी दौड़ ने मानव को भयभीत बना दिया है। वर्तमान युग में वे मानवीय कल्याण की बात छोड़कर सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। इसी संदर्भ में जैनदर्शन में सप्तविध भय की अवधारणा का उल्लेख मिलता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उसका अध्ययन आवश्यक है। जैन दर्शन भय के स्थान पर अभय (अहिंसा) की अवधारणा के विकास को प्रमुखता देता है । प्राणीमात्र भय से कैसे मुक्त हो, विश्व में शान्ति कैसे स्थापित हो एवं मानव जाति का कल्याण कैसे हो, इन बातों का तथ्यात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए। प्रस्तुत शोधप्रबंध में हमारा यही उद्देश्य रहा है कि मानवता को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण प्राणी जगत् को भय से कैसे मुक्त किया जावे। इस शोधप्रबंध का चतुर्थ अध्याय मैथुन - संज्ञा के विवेचन से सम्बन्धित है। चारित्रमोहनीय-कर्म के उदय के कारण कामवासनाजन्य आवेग मैथुन संज्ञा कहलाती है। स्थानांगसूत्र में मैथुन संज्ञा के चार कारण बताये हैं 1. 2. 3. 4. नामकर्मजन्य दैहिक संरचना के कारण मोहनीय कर्म के उदय से कामसम्बन्धी चर्चा करने से वासनात्मक चिन्तन करने से 556 Jain Education International — स्त्री-पुरूष की कामेच्छा को मैथुन संज्ञा कहते हैं। जैन दर्शन में अंतरंग कामेच्छा के समान ही बहिरंग मैथुन प्रवृत्ति को भी कर्मबन्ध का कारण बताया गया For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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