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अर्थात्, पहला असुरकुमारों के द्वारा नारक जीवों को दिया जाने वाला दुःख, दूसरा शारीरिक-दुःख, तीसरा मानसिक-दुःख, चौथा क्षेत्र से उत्पन्न होने वाला दुःख और पांचवाँ परस्पर दिया जाने वाला दुःख।
सांख्यकारिका में दुःख के तीन प्रकार बताए हैं – आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक।
__ 1. आध्यात्मिक-दुःख - व्यक्ति के आन्तरिक, शारीरिक और मानसिक -कारणों से अभिव्यक्त या उत्पन्न होने वाले दुःखों को आध्यात्मिक-दुःख कहा जाता है। आध्यात्मिक-दुःख दो प्रकार के होते हैं, शारीरिक और मानसिक । वात, पित्त और कफ की विषमता आदि से उत्पन्न होने वाला दुःख मानसिक-दुःख है, जैसे -प्रियजन के वियोगादि से उत्पन्न दुःख। .
__2. आधिभौतिक-दुःख - आधिभौतिक-दुःख वह है जो विभिन्न प्राणियों जैसे, मनुष्य, पशु, सर्प, खटमल, मच्छर आदि के द्वारा जो कष्ट (दुःख) उत्पन्न होता है। इसमें सर्दी, गर्मी, वृक्ष, पर्वत, नदियां आदि के द्वारा जो दुःख होता है वह भी आधिभौतिक-दुःख है।
. 3. आधिदैविक-दुःख – देव, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत एवं ग्रह आदि के आवेश के कारण एवं दुष्ट ग्रह आदि के दुष्ट प्रभाव से होने वाला दुःख आधिदैविक-दुःख कहलाता है। “आधिदैविकं शीतोष्णवातवर्षीसन्यवश्या यावेशनिमित्तम्।25
मूलतः, ये ही त्रिविध दुःख हैं तथा प्रतिकूल और वेदनीय होने से तीनों ही तिरस्कार करने योग्य हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है - जन्म दुःखरूप है, जरावस्था दुःखरूप है, रोग और. मरण भी दुःखरूप है। वस्तुतः, तो यह समूचा संसार ही । दुःखमय है, क्योंकि संसार में जन्म, जरा और मृत्यु लगे हुए हैं, जिससे प्राणी बार-बार पीड़ित होता है।26
24 दुःखत्रयाभिघातात् – सांख्यकारिका -1 2" सांख्यकारिका, डॉ. रविकान्त मणि, पृ. 62 26 उत्तराध्ययनसूत्र – 19/16
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