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है -जो पीड़ा देता है, वह दुःख है, अतः जो पीड़ाकारक या अरूचिकर है, वह दुःख है। कठिनता से प्राप्त, बैचेनी, खेद रंज, विषाद, वेदना और कष्ट देने वाला दुःख है।
सुख-दुःख का लक्षण -
दुःख का लक्षण बताते हुए आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं कि -'सदसेवेद्योदयेऽन्तरड्.गहेतौ सति बाह्यद्रव्यादिपरिपाकनिमित्तवशादुत्पद्यमानः प्रीतिपरितापरूपः परिणामः सुखदुःखमित्याख्यायते।।
अर्थात् 'सातावेदनीय और असातावेदनीय के उदयरूप अन्तरंग हेतु के रहते हुए बाह्यद्रव्यादि के परिपाक के निमित्त से जो प्रीति और परितापरूप परिणाम उत्पन्न होते हैं, वे क्रमशः सुख और दुःख कहे जाते हैं। दूसरे शब्दों में, पीड़ा रूप आत्मा का परिणाम दुःख है और इसके विपरीत सुख है।
वीरसेनाचार्य लिखते हैं –'अणिट्ठत्यसमागमो इगोत्थवियो च दुक्खं नाम। 16 अर्थात्, अनिष्ट अर्थ के समागम और इष्ट अर्थ के वियोग का नाम दुःख है और विषय-सेवन की तृष्णा (लालसा) से इन्द्रियों का निवृत्त हो जाना ही वास्तविक सुख
सुख-दुःख के भेद -
इस संसार में सुख-दुःख के आधार पर प्रवृत्ति एवं निवृत्ति सर्वत्र दिखाई देती है। वर्तमान समय में सुख की परिभाषा के रूप में सामान्यतः व्यक्ति भौतिक-सामग्री के भोग-उपभोग की सुविधा को सुख मानता है तथा भौतिक-सामग्री के अभाव या
14 वामन शिवराम आप्टे, संस्कृत-हिन्दी कोश, पृष्ठ -462 15 सर्वाथसिद्धि,5/20 16 सर्वाथसिद्धि, 6/11 17 गीता, शंकर भाष्य - 2/66
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