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________________ 422 इसका आशय यह है कि जैनदर्शन भौतिक एवं ऐन्द्रिक-सुखों को सुख रूप नहीं मानता है, क्योंकि वे क्षणिक एवं वियोग-धर्मा हैं। वस्तुतः, संसार में वीतरागता ही सुख है। जो पराधीन है, वह सब दुःखद है और जो स्वाधीन है, वह सब सुख है। विष्णुपुराण में कहा है -सुख-दुःख वस्तुतः मन के ही विकार हैं।' सुख के भीतर दुःख और दुःख के भीतर सुख सर्वदा वर्तमान रहता है, ये दोनों ही जल और कीचड़ के समान परस्पर मिले हुए रहते हैं। दूसरों ने जिसे सुख कहा है, आर्यों ने उसे दुःख क़हा है। आर्यों ने जिसे दुःख कहा है, दूसरों ने उसे सुख कहा है। दुःखी सुख की इच्छा करता है, सुखी और अधिक सुख चाहता है, किन्तु सांसारिक-दुःख सुख में उपेक्षाभाव रखना ही वस्तुतः सुख है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सुख-दुःख-संज्ञा व्यक्ति की अनुभूतिमात्र है। जब व्यक्ति विकारों और विकृतियों से युक्त होता है, तो वह दुःखी होता है, व्याकुल होता है और जब ये विकृतियाँ और विकार समाप्त हो जाते हैं, तो सुख का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। सुख सब चाहते हैं और इसकी तलाश भी सब करते हैं, परन्तु सुख की तलाश में अधिकतर मिलता है-दुःख, क्योंकि तलाश ही दुःख है। जहाँ तलाश है, चाह है, कामना है, वहीं दुःख है। जब हमारी तलाश, चाह, कामना, इच्छा, आकांक्षा, आशा की पूर्ति होती है तो हम कुछ देर के लिए 'सुखी' महसूस करते हैं। परन्तु तत्काल ही दुःखी भी महसूस करते हैं, क्योंकि एक इच्छा की पूर्ति होते ही अनगिनत नई इच्छाओं का जन्म हो सुखा विरागता लोके – सुत्तपिटक, उदान- 2/1 'सव्वं परवसं दुक्खं, सव्वं इस्सरियं सुखं । - वही-2/9 'मनसः परिणामोऽयं सुखदुःखादिलक्षणाः । – विष्णुपुराण - 2/6/47 सुखमध्ये स्थितं दुखं दुःखमध्ये स्थितं सुखम् । द्वयमन्योऽन्यसंयुक्त प्रोच्यते जलपंकवत्।। - आध्यात्मरामायण, अयोध्याकाण्ड 1/23 अप्पियेहि सम्पयोगो दुक्खं पियेहि विप्प्योगो दुक्खं। - संयुत्तनिकाय -54/2/1 दुक्खी सुखं पत्थयति, सुखी भिय्योपि इच्छति। उपेक्खा पन सन्तत्ता, सुखमिच्चेव भासिता।। - विसुद्धिमग्ग 1/238 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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