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________________ 404 दशवैकालिकसूत्र' में चारों काषायिक-प्रवृत्तियों के जय के उपाय बतलाए गए हैं – क्रोध को क्षमा से, मान को मृदुता (विनयभाव) से, माया को सरलता से जीतें और लोभ को संतोष से जीतें। नियमसार” और योगशास्त्र में भी इसी प्रकार कहा गया है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने इसी आशय से कहा है कि - जब तक ए काषयिक प्रवृत्तियों का क्षय नहीं होगा, उन पर जय प्राप्त नहीं होगी, तब तक मुक्ति संभव नहीं। नासाम्बरत्वे, न सिताम्बरत्वे, न तर्कवादे न च तत्त्ववादे, न पक्षसेवाश्रएण मुक्ति, कषायमुक्ति किल मुक्तिरेव।" "न दिगम्बर होने से, श्वेताम्बर होने से, न तर्कवाद से, न तत्त्व-चर्चा से, न पक्ष की सेवा से मुक्ति है, वस्तुतः, कषायमुक्ति ही मुक्ति है।" लोभ सभी कषायों का राजा है, उस पर विजय प्राप्त कर लेने पर सभी कषायों पर विजय प्राप्त हो जाती है, अतः संतोष से लोभ पर विजय प्राप्त करना चाहिए। -000 -------000---- 76 उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं चज्जवभावेण, लोभं संतोसओ जिणे।। - दशवैकालिकसूत्र 8/39 7 कोहं खमया माणं समद्दवेणज्जवेण मायं च । संतोसेण य लोहं जयदि खु ए चहुविहकसाए ।। - नियमसार, गाथा 115 78 क्षान्त्या क्रोधो, मृदुत्वेन मानो, मायाऽऽर्जवेन च लोभश्चानीहया, जेयाः कषायाः इति संग्रहः ।। - योगशास्त्र 4/23 १ सम्बोध सप्तवर्तिका - गाथा 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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