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________________ 382 की पूर्ति के लिए रात-दिन दौड़ लगाता है, वहाँ उसकी आवश्यकताएँ गौण होकर लोभ प्रवृत्ति प्रमुख हो जाती है। भगवतीसूत्र" में लोभ के सोलह पर्यायवाची शब्दों की तथा समवायांगसूत्र में चौदह पर्यायवाची की चर्चा की गई है। समवायांगसूत्र में लोभ के निम्न चौदह पर्याय बताए हैं – लोभ, इच्छा, मूर्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिध्या, अभिध्या, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा, नन्दि एवं राग। भगवतीसूत्र में इन चौदह पर्यायों के अतिरिक्त तीन अन्य पर्याय भी दिए हैं जो इस प्रकार हैं - आशंसन, प्रार्थन, लालपन। 'समवायांगसूत्र' में नंदी एवं राग को भिन्न-भिन्न रूपों में परिगणित किया गया है एवं 'भगवतीसूत्र' में नंदीराग को एक ही पर्यायवाची बताया गया है। भगवतीसूत्र की अभयदेवसूरि वृत्ति के अनुसार इन पर्यायवाचियों की व्याख्या निम्न है - 1. लोभ – मोहनीयकर्म के उदय से चित्त में उत्पन्न होने वाली संग्रह करने की वृत्ति लोभ है। 2. इच्छा - इष्ट प्राप्ति की भावना, अभिलाषा इच्छा है। इच्छा का संबंध किसी वस्तु या विषय से होता है। वह व्यक्ति को पर से जोड़ती है। परद्रव्यों की चाह ही इच्छा है, तीन लोक को पाने की भावना इच्छा है। 3. मूर्छा - तीव्र संग्रह-वृत्ति मूर्छा कहलाती है, या पदार्थ के संरक्षण में होने वाला अनुबंध, प्रकृष्ट मोहवृत्ति मूर्छा है। 31 अहं भंते। लोभे इच्छा, मुच्छा, कांखा, गेही, तण्हा, विज्झा, अभिज्झा, आसासणया, पत्थणया, लालप्पणया, कामासा, भोगासा, जीवियासा, मरणासा, नंदिरागे ... | – भगवतीसूत्र श.12, उ.5, सूत्र 106 32 लोभे इच्छा मुच्छा कांखा ....... - समवायांगसूत्र 52/ सू.1 33 इच्छाभिलाषस्त्रैलोक्यविषयः । - तत्त्वार्थसूत्र भाष्यवृत्ति 8/10 34 मूर्छा प्रकर्षप्राप्ता मोहवृद्धिः । - तत्त्वार्थसूत्र भाष्यवृत्ति 8/10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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