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________________ 18. कर्म-प्रवेश होता है। नौका में हुए छिद्र को बंद करने पर जल - आगमन अवरुद्ध हो जाता है; उसी प्रकार क्षमा- भावपूरित आत्मा में कर्म-निरोध होता है । जिस प्रकार नाव में भरे जल को किसी पात्र से बाहर फेंक देने से नाव हल्की हो जाती है; उसी प्रकार क्षमारूपी यतिधर्म का पालन करने से आत्मा शुद्ध बनती है। उत्तराध्ययनसूत्र" में कहा है कोह विजएणं भंते! जीवे किं जाणयई? उत्तर- कोह विजएणं खंति जणयइ, अर्थात् क्रोध पर विजय करने से क्या प्राप्त होता है ? उत्तर क्रोध पर विजय करने से क्षमाभाव प्रगट - - 90 उत्तराध्ययनसूत्र अ. 29, गा. 68 " क्रोधवह्नेस्तदह्नाय शमनाय शुभात्सभिः । श्रयणीया क्षमैकैव संयमारामसारणिः ।। होता है। क्षमा मोक्ष का द्वार है। क्षमा वीरों का भूषण है । सहज क्षमा ही क्षमा है, कषाय प्रेरित क्षमा, क्षमा नहीं है। क्षमा करने से जो आनन्द प्राप्त होता है, वह अकथनीय है । क्षमा से शत्रु भी हमेशा मित्र बन जाते हैं । क्षमा से ही शान्ति प्राप्त होती है तथा इहलोक एवं परलोक - दोनों सुखकारी बनते हैं। योगशास्त्र में कहा है -" उत्तम आत्मा को क्रोधरूपी अग्नि तत्काल शान्त करने के लिए एकमात्र क्षमा का ही आश्रय लेना चाहिए | क्षमा ही क्रोधाग्नि को शान्त कर सकती है। क्षमा संयमरूपी उद्यान को हरा-भरा बनाने के लिए क्यारी है।"91 Jain Education International 321 इसके अलावा क्रोध-विजय के कुछ अन्य संक्षिप्त सूत्र इस प्रकार हैं 1. क्रोध का निमित्त मिले, तब मौन हो जाएँ, या सौ से उलटी गिनती पढ़ना प्रारम्भ कर दें । ― 2. क्रोध की अवस्था में एक बार अपना चेहरा दर्पण में देख लें, तो आप क्रोध करना भूल जाएंगे। 3. क्रोध में एक गिलास ठंडा पानी पी लें और उसे थोड़े समय मुख में ही रखें। योगशास्त्र 4/11 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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