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________________ क्रोधवश शय्यापालक के कानों में शीशा डलवाने से भगवान् महावीर स्वामी के कानों में भी कीलें ठोकी गई 180 गुणसेन - अग्निशर्मा की नौ भव तक वैर की परंपरा चली। 1 कमठ भी द्वेष के कारण दस भवों तक भगवान् पार्श्व का वैरी बना और अन्त में दुर्गति को प्राप्त हुआ | 2 5. क्रोध के कारण आत्मदर्शन संभव नहीं - T दर्पण पर फूंक मारने पर वह धुंधला हो जाता है, फिर उसमें आप अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते । यही स्थिति क्रोध के विषय में है । मन के दर्पण में क्रोध की फूंक मारने से आत्म-दर्शन संभव नहीं है । खौलते पानी में आप अपना प्रतिबिम्ब कैसे देख सकते हैं ? क्रोधी व्यक्ति आत्मदर्शन कैसे कर सकता है ? आत्मदर्शन, आत्मानुभूति, आत्म-साक्षात्कार समता -भाव में ही संभव है । 6. क्रोध से स्मरणशक्ति का नाश ' 314 Jain Education International होठों की मुस्कान जहाँ हमारे चेहरे के सौन्दर्य को बढ़ाती है, वहीं क्रोध की रेखा सौन्दर्य को मिट्टी में मिला देती है । क्रोध हमारे दिमाग को कमजोर करने के साथ-साथ शरीर को भी कमजोर करता है। गुस्सा आदमी के शरीर रक्तचाप बढ़ा देता है। गीता में भी कहा है – क्रोध से स्मृतिभ्रम होता है और उससे बुद्धि का नाश होता है । क्षुब्ध अवस्था में ज्ञान - तन्तु शिथिल हो जाते हैं । चैतन्य का ज्ञानक्षेत्र संकुचित हो जाता है । 80 कल्पसूत्र से " समरादिल्य चारित्र 82 कल्पसूत्र, हिन्दी अनुवाद श्री जिन आनन्दसागर सूरिश्वर जी, पृ. 234 83 गीता, 2/63 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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