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6. संज्वलन -
जलन या ईर्ष्या की भावना संज्वलन है। क्रोध से बार-बार आगबबूला होना, संज्वलन है। यहाँ 'संज्वलन' का अर्थ संज्वलन-कषाय से भिन्न है। कई लोग व्यतीत हो चुके क्षणों को, बीत चुके घटना–प्रसंगों को, किसी के बोले गए शब्दों को, बार--बार दोहराते रहते हैं और अपने को क्रोध से भरते रहते हैं।
7. कलह -
क्रोध में अत्यधिक अनुचित शब्द या अनुचित भाषण करना कलह कहलाता है। इसे सामान्य रूप से वाक्युद्ध कहा जाता है। सामान्य से प्रसंगों में भी अपने स्वार्थ की हानि होने पर क्रोधाविष्ट होकर कई व्यक्ति अविवेकपूर्ण, अनर्गल, उत्तेजक शब्दों में बोलना प्रारम्भ कर देते हैं - यह कलह है। 8. चाण्डिक्य -
___ क्रोध में उग्र-रूप धारण करना, सिर पीटना, बाल नोंचना, अंग-भंग करना, आत्महत्या करना, चाण्डिक्य-क्रोध की परिणतियाँ हैं।
9. मंडन -
दण्ड, शस्त्र आदि-से युद्ध करना मंडन है।' चाण्डिक्य में क्रोधावस्था में स्वयं को कष्ट दिया जाता है एवं मंडन में दूसरों पर प्रहार होता है।
मुंहमांगा दहेज न लाने पर क्रोध में भरकर कई बहुओं को जला दिया जाता है। लूटपाट में बाधक बनने पर कई लोगों को लुटेरे गोली का निशाना बना देते हैं। कई बार क्रोधावेश में पति, पत्नी की हत्या कर देता है, आदि।
60 वही 61 भगवतीसूत्र, अभयदेवसूरि वृत्ति, श. 12, उ.5, सू 2
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