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________________ उन्हें फेंक कर वातावरण को दूषित करता है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति जो ऐसा नहीं कर पाते, वे हीनभावना से ग्रसित होकर एक विषादपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं और उसकी पूर्ति हेतु नाना प्रकार के आर्थिक अपराधों में लिप्त होने को बाध्य होते हैं। 260 9. प्रदूषण वर्तमान में विज्ञापन और उपभोक्ता संस्कृति के कारण अरबों रूपयों वाले अनेक नए-नए उद्योग और सेवाएं चल पड़ी हैं । अर्थशास्त्री इसे आर्थिक विकास का सूचक मानते हैं, कि इस अतिभोगवादी संस्कृति के भावी दुष्परिणामों का चिन्तन करने वाले कम ही रह गए हैं, क्योंकि विकास की तात्कालिक चमक-दमक तो सबको नजर आती है, किन्तु भोगवादी संस्कृति के मूल में निहित आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक असन्तुलन किसी को दिखाई नहीं देता । विषाक्त औद्योगिक कचरा और शहरों में बढ़ते हुए कूड़े के ढेर भी लोगों को सावधान नहीं करते। अधिक भोग का अर्थ है - अधिक उत्पादन | अधिक उत्पादन के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन और ऊर्जा की अधिक खपत । परिणाम प्राकृतिक असन्तुलन और प्रदूषण । सिकुड़ते जंगल, वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा, परमाणु रिएक्टरों से फैलता हुआ रेडियाधर्मी विकिरण आज वैज्ञानिकों की चिन्ता के विषय बन गए हैं। इसी के परिणाम स्वरूप हमारे ग्रह का बढ़ता हुआ तापमान, विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ और नाना प्रकार के असाध्य रोग खतरे की घंटी बजा रहे हैं। यदि हालात नही बदले तो इक्कीसवीं सदी के मध्य तक भीषण प्राकृतिक विप्लव की आशंका वैज्ञानिकों को हो रही है। उपभोक्त संस्कृति शनैः-शनैः आत्मघाती विनाश की ओर अपने कदम बढ़ा रही है । प्रकृति के सारे संसाधनों का भोग हम ही कर लेंगे। भले ही हमारी भावी पीढ़ी भूखों मरे । 'यूज एंड थ्रो' संस्कृति का यही परिणाम होगा। अगर गहराई से चिन्तन करें तो इस सबके मूल में परिग्रह और संचय वृत्ति ही है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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