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________________ विसर्जन होगा, तो गरीबी अपने आप दूर हो जाएगी। वस्तुतः, आवश्यकता इस बात की है कि व्यक्ति में परिग्रह के विसर्जन की भावना उद्भूत हो । परिग्रह के विसर्जन से ही वर्गसंघर्ष समाप्त हो सकता है। जब तक संग्रहवृत्ति समाप्त नही होती, आर्थिक समानता नहीं आ सकती है। 5. युद्ध का कारण परिग्रह आज विश्व के चारों ओर जो अशान्ति के बादल मंडरा रहे हैं और मनुष्य - मनुष्य के बीच जो बैर-विरोध बढ़ रहा है यदि उसके कारणों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए तो मूल में परिग्रह और अनन्त इच्छाएँ हैं। अपने मात्र साढ़े तीन हाथ के शरीर की सुविधा के लिए दुनियाभर के परिग्रह को वह अपने घर में जमा करता है। आज देखा जाता है कि हर घर में भाई-भाई में, पड़ौसी - पड़ौसी में तथा राष्ट्रों के बीच तनाव और वैमनस्य बना रहता है । सर्वत्र दंगे और फसाद होते ही रहते हैं । न्यायालयों में अभी जितने अभियोग विचाराधीन हैं, उसमें से अधिकांश के मूल में परिग्रह ही है । अस्त्र-शस्त्रों का परिग्रह, युद्ध का मूल कारण है । देश की सुरक्षा और शान्ति के लिए शस्त्र रखे जाते हैं । परन्तु शस्त्रों की होड़ा - होड़ संग्रहवृत्ति इतनी बढ़ गई है कि संपूर्ण पृथ्वी बारूद के ढेर पर टिकी है, किसी भी राष्ट्र ने अपने शस्त्रों के भण्डार का प्रयोग किया तो कुछ ही समय में संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो सकती है । हिटलर, नेपोलियन, मुसोलिनी ने साम्राज्य लिप्सा के कारण युद्ध किया। इसके कारण यूरोप और रूस की भूमि रक्तरंजित हुई। भीषण नरसंहार हुआ, लाखों बच्चे अनाथ हुए, लाखों नारियों की मांग का सिन्दूर साफ हो गया, लाखों निरपराध व्यक्ति बिना मौत मारे गए। अरबों की सम्पत्ति स्वाह हो गई । बमों द्वारा मानव संहार का कैसा वीभत्स दृश्य उपस्थित हो गया ? अगर मूल में देखा जाए तो संचयवृत्ति की चाह और परिग्रह के कारण ही महायुद्ध हुऐ । - 68 जैनप्रकाश 8 अप्रैल 1969, पृ. 11 " Jain Education International 257 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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