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________________ 247 15. उपकरण - जीवनोपयोगी साधन-सामग्री की संचयवृत्ति। वास्तविक आवश्यकता का विचार न करके अत्यधिक साधन-सामग्री एकत्र करना। 16. संरक्षणा – प्राप्त पदार्थों का आसक्तिपूर्वक संरक्षण करना। 17.भार - परिग्रह जीवन के लिए भारभूत है, अतएव उसे 'भार' नाम दिया गया है। 18. संपातोत्पादक - नाना प्रकार के संकल्पों-विकल्पों का उत्पादक, अनेक अनर्थों एवं उपद्रवों का जनक। 19. कलिकरण्ड – कलह का पिटारा। परिग्रह कलह, युद्ध, बैर, विरोध, संघर्ष आदि का प्रमुख कारण है, अतएव इसे कलह का पिटारा नाम दिया गया है। 20. प्रविस्तर - धन-धान्य आदि का विस्तार भी परिग्रह है। 21.अनर्थ - परिग्रह नानाविध अनर्थों का प्रधान कारण है। 22. संस्तव - संस्तव का अर्थ है -अति परिचय या अच्छा मानना। यह वृत्ति मोह __ और आसक्ति को बढ़ाती है। 23.अगुप्ति - अपनी इच्छाओं या कामनाओं का गोपन न करना, उन पर नियन्त्रण न रखकर उन्हें स्वच्छन्द छोड़ देना। 24.आयास - आयास का अर्थ है - खेद या प्रयास। परिग्रह जुटाने के लिए। मानसिक और शारीरिक-खेद होता है, प्रयास करना पड़ता है। 25.अवियोग- विभिन्न पदार्थों के रूप में धन, मकान या दुकान आदि के रूप में जो परिग्रह एकत्र किया है, उसे बिछुड़ने न देना। चमड़ी चली जाए, पर दमड़ी न जाए -ऐसी वृत्ति अवियोग है। 26. अमुक्ति – मुक्ति अर्थात् निर्लोभता, उसका न होना, अर्थात् लोभ की वृत्ति होना। यह मानसिक भाव-परिग्रह है। 27.तृष्णा – अप्राप्त पदार्थों की लालसा और प्राप्त वस्तुओं की बुद्धि की अभिलाषा तृष्णा है, तृष्णा परिग्रह का मूल है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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