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________________ 243 इसी प्रकार, पुराण भी परिग्रह की मूल भावना आसक्ति (तृष्णा) को त्याज्य बतलाते हैं। उनके अनुसार, अग्नि में ईंधन डालने के समान ही विषयोपभोग से तृष्णा कभी शांत नहीं होती। भूमण्डल पर जितने भी धान्य, स्वर्ण, पशु, स्त्रियाँ आदि हैं, वे सब एक मनुष्य के लिए भी तृप्तिकारक नहीं हैं। कामनाओं के त्याग से ही मानव समृद्ध होता है। केश, दंत, चक्षु, कर्ण-सभी के जीर्ण हो जाने पर भी बुढ़ापे में तृष्णा ही तरुण रूप से रहती है। मनुष्य का स्वभाव ऐसा होता है कि जिसके पास सौ रुपए होते हैं, वह सहस्त्र की इच्छा करता है, सहस्त्र वाला लक्ष का अधिपति होना चाहता है, लक्षाधिपति एक विशाल राज्य प्राप्त करने की इच्छा रखता है, राजा चक्रवर्ती सम्राट बनने की लालसा रखता है, चक्रवर्ती भी देवपद तथा देवपद की प्राप्ति के बाद इन्द्रपद की चाह रखता है, किन्तु इन्द्रपद मिलने के बाद भी तृष्णा शांत नहीं होती है। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि परिग्रह का मूल स्वरूप आसक्ति और तृष्णा से जुड़ा हुआ है। जब तक व्यावहारिक रूप में आसक्ति, मूर्छा या तृष्णा समाप्त नहीं होती, तब तक जीव परिग्रह-संज्ञा से युक्त बना रहता है। पाश्चात्य-विचारक महात्मा टालस्टाय ने भी How Much Land Does A Man Needs नामक कहानी में एक ऐसा ही सुन्दर रूपक खींचा है। कहानी का सारांश यह है कि कथानायक भूमि की असीम तृष्णा के पीछे अपने जीवन की बाजी लगा देता है, किन्तु अन्त में उसके द्वारा उपलब्ध किए गए विस्तृत भू–भाग में केवल उसके शव को दफनाने जितना भू–भाग ही उसके उपयोग में आता है। 43 जीर्यन्तः केशा दन्ता चक्षुः श्रोतश्च जायेते तृष्णैका निरूपद्रवा। - लिंगपुराण 1, श्लो. 21-22, पृ. 410 " इच्छति शति सहस्त्रं सहस्त्री लक्षमीहते। कर्तुलक्षाधिपती राज्यं, राज्येऽपि सकलचक्रवर्तित्वम् ।। चक्रधरोऽपि सुरत्वं सुरत्वलाभे सकलसुरपतित्वम् । भवितुं सुरपतिरूवंगातत्वं तथापि न निवर्तते तृष्णा।। - गरूड़पुराण (2), 2/14-15, पृ. 254 "जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 238 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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