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जैन दर्शन की संज्ञा की अवधारणा का समीक्षात्मक अध्ययन
अध्याय-1
1. विषय प्रवेश 2. संज्ञा की परिभाषा और स्वरूप 3. संज्ञा के विभिन प्रकार चार, दस एवं सोलह 4. संज्ञा इच्छा या आकांक्षा के रूप में 5. संज्ञा बौद्धिक विवेक के रूप में 6. संज्ञा व्यवहार के प्रेरक तत्त्व के रूप में 7. अन्य धर्मदर्शनों में संज्ञा की अवधारणा 8. आधुनिक मनोविज्ञान में संज्ञा मूल प्रवृत्तिओं के रूप में
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