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________________ 179 दमित वासनाएँ साधना के उच्च स्तर पर स्थित व्यक्ति को भी नीचे गिरा देती हैं। जैनदर्शन की पारिभाषिक शब्दावली में कह, तो उपशम मार्ग का साधक आध्यात्मिक पूर्णता के चौदह गुणस्थानों में से ग्वारहवें गुणस्थान तक पहुंचकर वहाँ से गिरता है और पुनः प्रथम मिथ्यात्व-गुणस्थान तक आ सकता है। यह तथ्य जैनसाधना में दमन के अनौचित्य को स्पष्ट करता है। कामतत्त्व के मूल में रागवृत्ति रहती है। यही रागवृत्ति फ्रायड के दर्शन में 'लिबिडो' के अर्थ में मानी गई है। 'राग' तत्त्व के कारण ही व्यक्ति 'पर' से जुड़ता है और पर के जुड़ाव की यह वृत्ति ही आध्यात्म के क्षेत्र में कामवृत्ति या मैथुनसंज्ञा कही गई है। जैनदर्शन कामवासना से मुक्त होकर वीतरागता की बात करता है। जबकि फ्रायड भी अपने मनोविश्लेषण के सिद्धान्त" {Psychoanalytic theory} के अनुसार इस बात का समर्थन करता है कि वासना का दमन न करके उसका निरसन करके हम वासनाओं से मुक्त हो सकते हैं। मनोविश्लेषण मन के प्रति सतत जागरुकता के बिना संभव नहीं। मन या चेतन की सतत जागरुकता ही जैनदर्शन में आध्यात्मिक विकास का आधार मानी गई है। ___ फ्रायड और जैनदर्शन - दोनों ही यह मानते हैं कि दमित वासना या कर्म-संस्कार कभी भी हमारी विमुक्ति के साधन नहीं बन सकते हैं। फ्रायड के अनुसार, अचेतन मन ही वासनाओं का भण्डार है और उन वासनाओं को दमित स्तर पर नहीं, पर चैतसिक-स्तर पर लाकर उनकी निरर्थकता का बोध करते हुए हमारी चेतना से बहिष्कृत किया जा सकता है। जैनसाधना-पद्धति तो समत्व (समभाव) की साधना है।98 वासनाओं के दमन का मार्ग तो चित्तक्षोभ उत्पन्न करता है, अतः वह उसे स्वीकार नहीं है। जैनसाधना का आदर्श क्षायिक-साधना है, जिसमें वासना का दमन नहीं, वरन् वासना-शून्यता ही साधक का लक्ष्य है। % देखिए- गुणस्थानारोहण 97 मनोविश्लेषणात्मक-सिद्धान्त मानव-प्रकृति या स्वभाव {Human Nature} के बारे में कुछ मूल पूर्वकल्पनाओं {basic assumptions} पर आधारित है। 98 उत्तराध्ययनसूत्र - 23/58 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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