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कीर्तन -
काम-क्रीड़ा सम्बन्धी वार्तालाप करना। किसी के साथ बैठकर उसके सम्बन्ध में चर्चा करना इत्यादि। इस प्रकार की बातचीत करने से स्वयं की वाचिक पवित्रता समाप्त हो जाती है।
अपने जीवन में हमेशा ऐसे ही मित्रों के साथ अपना संग होना चाहिए, जिनके साथ धार्मिक और आत्मविकास की बात होती है। काम-क्रीड़ा संबंधी चर्चा करने से भी काम-वृत्तियों को उत्तेजना मिलती है, इसलिए संयम की सुरक्षा के लिए विजातीय-तत्त्वों के साथ अनावश्यक वार्तालाप से सर्वथा दूर रहना चाहिए। केलि -
केलि, अर्थात् हंसी-मजाक, किसी स्त्री आदि के साथ हास्य-विनोद करना, हंसी-मजाक की बातें करना। इस प्रकार, हंसी-मजाक करने से एक-दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता है और जीव आनन्द की अनुभूति करता है, अतः संयमी आत्मा को इस प्रकार की हंसी-मजाक नहीं करना चाहिए। संयमी व्यक्ति को मित–परिमित ही बोलना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक शब्द प्रभावशाली होता है। जो व्यक्ति इधर-उधर की गपशप लगाते रहते हैं, उनके शब्दों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रेक्षण -
मैथुन-संज्ञा को उत्तेजित करने वाले दृश्य देखना। किसी स्त्री-पुरुष की कामक्रीड़ा आदि के दृश्यों को देखने से स्वयं के संयम का नाश होता है, क्योंकि इस प्रकार के दृश्य अचेतन मन में रही सुषुप्त वासनाओं को उत्तेजित किए बिना नही रहते हैं। सिनेमा, टीवी, कामुक पोस्टर और पर्दे पर दिखाई देने वाले कामुक दृश्यों को बार-बार देखने से नैतिक-चरित्र का पतन हुए बिना नहीं रहता है, अतः संयमी आत्मा को इस प्रकार के कामुक दृश्यों के दर्शन से सदा दूर रहना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के दृश्य दृष्टा के दिल में उत्सुकता पैदा करते हैं और फिर धीरे-धीरे व्यक्ति उस प्रकार की दुष्प्रवृत्ति करने के लिए तैयार हो जाता है।
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