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________________ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय - चिन्तन का मुख्य आधार यह था कि विरोधी राष्ट्रों से अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों का भारी भण्डार जमा कर शान्ति को सुनिश्चित किया जा सकता है, लेकिन इस धारणा ने विश्व में शान्ति को सुनिश्चित करना तो दूर, मानव का जीना ही दूभर कर दिया । अब तक जितने भी नाभिकीय हथियार जमा हो चुके हैं, वे पृथ्वी को कई बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। वर्तमान में सभी देश आणविक और अन्य अस्त्र-शस्त्रों की शक्ति जुटाने में लगे हुए हैं। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आज संपूर्ण संसार एक बारूद के ढेर पर बैठा है। एक भी राष्ट्र ने मूर्खतावश उसमें चिंगारी लगाई, तो कुछ ही मिनट में संसार राख का ढेर बन सकता है। इस सबके पीछे पारस्परिक - अविश्वास, असुरक्षा की भावना तथा लोभ (परिग्रह) वृत्ति ही है, जिसने मानवीय मूल्यों अर्थात् पारस्परिक - विश्वास एवं सहयोग की भावना को ही समाप्त कर दिया है। जैनदर्शन की भाषा में कहें, तो इस सबके मूल में भय एवं परिग्रह संज्ञा ही है । Jain Education International 139 - पूर्व चर्चा में हमने विवेचन किया कि विश्व में अस्त्र-शस्त्रों की जो दौड़ चल रही है, उसका मूल कारण भय है । भय पारस्परिक - अविश्वास से पैदा होता है। यदि विश्व के राष्ट्रों में पारस्परिक-- विश्वास का विकास हो जाए, तो यह अस्त्र-शस्त्रों की दौड़ स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। आज विश्व में निःशस्त्रीकरण की बात चल रही है। निःशस्त्रीकरण का अर्थ है, अस्त्र-शस्त्रों को कम करना, नियंत्रित करना । अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ डिफेन्स एनालिसिस ने निःशस्त्रीकरण की परिभाषा देते हुए कहा है "कोई भी एक योजना, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निःशस्त्रीकरण के किसी भी एक पहलू, जैसे संख्या, प्रकार, शस्त्रों की प्रयोजन - प्रणाली, उसका नियंत्रण, उसकी सहायता के लिए पूरक यंत्रों का निर्माण, प्रयोग व वितरण, गुप्त - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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