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कृतज्ञता ज्ञापन
सर्वप्रथम मैं हृदय की असीम आस्था के साथ नतमस्तक हूँ धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले परमतारक सिद्ध बुद्ध निरंजन निराकार परमात्मा एवं उनके शासन को, जिन्होनें अपने साधना के माध्यम से केवलज्ञान के आलोक को उपलब्ध किया एवं उनकी कल्याणकारिणी वाणी के प्रति, जो मेरी श्रुतसाधना के अवलंबन बने। मेरी दर्शन-विशुद्धि, आत्मविशुद्धि के साथ इस कृति के सर्जन का भी आधार बनी है।
इस शोध कार्य की सम्पन्नता महान आत्म साधिका, भाववत्सला प.पू. गुरूवर्या श्री अनुभवश्री जी म.सा. की दिव्य कृपा के बिना संभव नहीं थी। उनकी अदृश्य प्रेरणा ही मेरे आत्मविश्वास का अटल आधार बनी। प.पू. सुप्रसिद्ध गुरूवर्या श्री हेमप्रभा श्री जी म.सा. (सांसारिक भुआ जी म.सा.) की पावन स्मृति मेरी आत्मतृप्ति का अलौकिक अमृत है, वे मेरी चेतना है ..... वे मेरी प्रेरणा है, दीक्षा दात्री हैं एवं जिनका शिष्यत्व मेरे लिए गौरव का विषय है। गुरू समर्पिता विनीतप्रज्ञा श्रीजी म. सा. जिनकी प्रेरणा ही मेरे अध्ययन का आधार थी। परंतु कालचक्र के क्रूरप्रहार ने गुरूवर्याश्री को और उन्हें हमसे अलग कर दिया। मैं उनके साथ अल्पावधि तक ही रह पाई, उनकी अदृश्य प्रेरणा ही मेरे आत्मविश्वास का आधार है, उनका मंगलमय आशीर्वाद मेरे जीवन पथ को सदा आलोकित करता रहे, इन्हीं आकांक्षाओं के साथ आराध्य चरणों में अनन्तशः वंदना समर्पित ....।
जिनके आशीर्वाद एवं स्नेह की मुझे सदा अपेक्षा है; प.पू. सुदीर्घसंयमी विनोदश्री जी म.सा. (सांसारिक बड़ी भुआ जी म.सा.) एवं प.पू. आदर्श संयमी सेवामूर्ति विनयप्रभाश्री जी म.सा.। मेरी आत्मीय गुरूभगिनी कोकिलकंठी श्री कल्पलता श्री जी म.सा. जिन्होंने लंबी अवधि से अधूरे रहे इस शोध कार्य को पूर्ण करने हेतु प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी मुझे वापस शाजापुर भेजा, वह मेरे प्रति उनके अनन्य प्रेम का साक्षी है। वे मेरे अपने हैं, उनके प्रति कृतज्ञता कर परायेपन
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