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________________ 96 से पैदा होता है। कहा जाता है कि एक भयभीत व्यक्ति कभी मोक्ष नहीं पा सकता, क्योंकि जो भय को जीत लेता है, वही मोक्षगामी हो सकता है। यह प्रत्यक्ष सुनने में आता है कि मृत्यु का भय सबसे बड़ा है। मौत से भय लगता है, किन्तु यह चिन्तन का विषय है कि भला मौत से भय क्यों लगता है ? क्या वास्तव में हमारा कभी मौत से साक्षात्कार हुआ है ? दूसरे को मृत्यु से मरता हुआ देखकर हमें अपनी मृत्यु की कल्पना से भय लगता है। केवल बार-बार सुनकर हमने मान्यता के रूप में यह स्वीकार कर लिया है कि हमें भी मरना है। यह कल्पना व्यक्ति को मृत्यु से भयभीत बनाती है। जैन-दार्शनिकों ने अपनी मान्यता के फलस्वरूप यह बताया है कि हमें मृत्यु से भय इसलिए लगता है क्योंकि यह हमारे पूर्वजन्मों का संस्कार है। जिस-जिसको हमने अपना प्रिय माना था, वे हमें छोड़कर चले गए या हमें उन सबको छोड़कर जाना पड़ेगा। यह अनुभव हमारे लिए दुःखद होता है, अतः उसकी स्मृति हमें मृत्यु से भयभीत बनाती है। मृत्यु से भय का दूसरा कारण यह भी है कि मृत्यु बड़ी अनिश्चित है, उसके आने का समय किसी को ज्ञात नहीं है। कुछ स्थितियों में मृत्यु अज्ञात है, इसलिए भी वह भयोत्पादक है, क्योंकि जीवन में जो भी अज्ञात होता है, वह सब व्यक्ति को भयभीत बना देता है। रेलगाड़ी की पटरियों की तरह जीवन सीधा-सपाट नहीं होता। वह तो सदा अनिश्चित ही है, किन्तु इस तथ्य को स्वीकार न कर पाने के कारण मानव-मन सदा भयग्रस्त बना रहता है। प्राणी जितना अधिक भयभीत होगा, वह उतना ही हिंसक होगा। साँप, बिच्छू या जहरीले जानवर ने एक बार किसी को काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई। बस, यह बात उसके मन में बैठ गई, तो वह जब-जब साँप, बिच्छू आदि हिंसक प्राणियों को देखेगा, उन्हें मारने का प्रयास करेगा। इस प्रकार, भयग्रस्त प्राणी हिंसात्मक-प्रवृत्तिवाला हो जाता है। बच्चों के कोमल हृदय में भय का संचार स्वयं उनके माता-पिता ही करते हैं। कई माताएं बच्चों में अकारण ही ऐसे ही भय के संस्कार भर देती हैं और बच्चों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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