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________________ 83 वाच्यार्थ हुआ –‘ऐसा आहार, जो मनुष्य की योग्यताओं का विकास करे और उसे बलशाली तथा पराक्रमी बनाए।' सामान्यतः, शाकाहार में ये दो शब्द सा मलित हैं - शाक और आहार। शाक से आशय साग-पात, तरकारी-फल आदि है और आहार का अभिप्राय रोटी, चावल आदि से है। जिस प्रकार दीर्घ जीवन के लिए शुद्ध जल, शुद्ध वायु आवश्यक है, उसी प्रकार उसके लिए भोजन भी आवश्यक है। वस्तुतः, जहाँ जैनदर्शन में बाईस अभक्ष्य और रात्रिभोजन, मद्य-मांस आदि को त्याज्य बताया है, क्योंकि "मांसाहार का सीधा संबंध क्रूरवृत्ति के साथ जुड़ा हुआ है। मांसाहार और क्रूरता सहगामी हैं। करुणा को समाप्त किए बिना हम मांसाहार के हिमायती नहीं बन सकते। करुणा मानव जीवन का एक ऐसा आवश्यक तत्त्व है, जिसके अभाव में मनुष्य एक दरिंदा या एक हिंसक-पशु से भी बदतर बन जाता है। मांसाहार के परिणामस्वरूप मनुष्य के जीवन में बर्बरता का विकास होता है। फलतः, संवेदनशीलता और करुणा समाप्त हो जाती है। यदि मानव में संवेदनशीलता और करूणा के तत्त्व को जीवित रखना है, तो हमें मांसाहार का त्याग करना होगा।" संज्ञाएँ मनुष्य की मूलवृत्तियाँ हैं और मांसाहार उन्हें उकसाने का कार्य करता है, अतः शाकाहार और मांसाहार के बीच चुनाव करने से पूर्व मनुष्य को यह निश्चय कर लेना चाहिए कि वह मानव-जाति में सुख, शान्ति, समृद्धि, संवेदनशीलता, समता आदि सद्गुणों को जीवित रखना चाहता है, या फिर हिंसा, तनाव, युद्ध, क्रूरता आदि को अपनी विरासत के रूप में छोड़ना चाहता है। "जो मानव उत्तम शाकाहारी पदार्थों को छोड़कर घृणित मांसाहार का सेवन करता है, वह सचमुच राक्षस की तरह ही है। 78 जो मानव जीवों का वध करके उनके मांस के द्वारा पितरों को तृप्त करता है, वह मूर्ख सुरभित चंदन को जलाकर उसकी राख से अपने शरीर पर लेप करने का काम करता है। जो मानव सब प्राणियों पर दया करता है और मांसभक्षण कभी 77 अहिंसा की प्रासंगिकता, डॉ. सागरमल जैन, पृ.-64 78 इमे वै मानवाः लोके नृशंसा मांस गृद्धिनः । विसृज्य विधिमान् भक्ष्यान् महारक्षो गण इव।। - युधिष्ठिर-भीम संवाद, महाभारत, अनुशासन पर्व 79 यस्तु प्राणिवधः कृत्वा पितृन्यांसेन तर्पयेत् । सोऽविद्धाग्चंदनं दग्धवा कुर्यादिंगार लेपनम् ।। - वृद्ध पाराशरस्मृति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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