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________________ 82 तथा अन्तर में उस पर नियंत्रण करता है, फिर भी क्रोधादि कषाय वृत्तियाँ उसके । अन्तर-मानस में तनाव तो उत्पन्न करती हैं। 7. अप्रमत्त-संयत गुणस्थान - यह पूर्ण सजगता की स्थिति है। इसे हम तनावमुक्ति की अवस्था कह सकते हैं। इस गुणस्थान में कषाय की अवयक्त सत्ता तो होती है, कषाय वृत्तियाँ व्यक्ति को विचलित करने का प्रयास भी करती रहती हैं, किन्तु उसके अन्तर्मन (आत्मा) की सजगता उसे तनावमुक्त बनाए रखती है। 8. निवृत्ति बादर (कषाय) गुणस्थान - इस अवस्था में साधक अधिकांश रूप में वासनाओं से मुक्त रहता है और मात्र बीजरूप संज्वलन माया और लोभ ही शेष रहते हैं।" इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि इस गुणस्थान में व्यक्ति तनावमुक्त रहता है। 9. अनिवृत्ति बादर (नोकषाय) गुणस्थान - यह भी तनावमुक्त अवस्था ही है, किन्तु इस गुणस्थान में रही हुई आत्मा पुनः तनावपूर्ण स्थिति में भी आ सकती है, क्योंकि इस अवस्था में तनाव उत्पत्ति के नोकषाय रूपी कुछ कारण अभी शेष होते हैं, यद्यपि व्यक्ति के तनावमुक्त हो जाने से यह सम्भावना अत्यन्त कम ही होती है। 10. सूक्ष्म संपराय गुणस्थान - अनिवृत्ति बादर गुणस्थान में नोकषाय होने से पुनः तनाव उत्पत्ति की संभावना तो होती है, किन्तु सूक्ष्म संपराय गुणस्थान में कषायों के कारणभूत हास्य, रति, अरति, भय, शोक और घृणा इन पूर्वोक्त छ: भावों एवं स्त्री-पुरुष और नपुंसक सम्बन्धी कामवासना को भी नष्ट कर देता है। " जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन – डॉ. सागरमल जैन, पृ. 465 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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