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________________ 1. मिथ्यात्व गुणस्थान 2. सास्वादन गुणस्थान 3. मिश्र गुणस्थान 4. अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान 5. देशविरति श्रावक गुणस्थान 6. प्रमादी साधु गुणस्थान 7. अप्रमादी साधु गुणस्थान 8. निवृत्ति बादर (कषाय) गुणस्थान 9. अनिवृत्ति बादर (नोकषाय)गुणस्थान 10. सूक्ष्म संपराय गुणस्थान 11.. उपशांत मोह गुणस्थान 12. क्षीणमोह गुणस्थान 13. सयोगी केवली गुणस्थान 14. अयोगी केवली गुणस्थान 1. मिथ्यात्व गुणस्थान - इस अवस्था में मनुष्य पूर्णतः तनावयुक्त रहता है, क्योंकि यह आत्मा की बहिर्मुखी अवस्था है। इस अवस्था में मानसिक दृष्टि से व्यक्ति तीव्रतम अनन्तानुबन्धी कषाय से वशीभूत रहता है", जिसके परिणामस्वरूप वह तनाव की तीव्रतम स्थिति में रहता है। इस अवस्था में व्यक्ति पर वासनात्मक प्रवृत्तियाँ पूर्ण रूप से हावी होती हैं और वासनात्मक व्यक्ति तनावयुक्त होता है। 2. सास्वादन गुणस्थान - जैनधर्म के अनुसार -"यह गुणस्थान आत्मा की पतनोन्मुख अवस्था का द्योतक है। 14 इस अवस्था में व्यक्ति में अनन्तानुबन्धी कषायवृत्ति का उदय तो होता है, किन्तु वह कुछ क्षण के बाद स्वयं को तनावों से युक्त कर लेता है। 3. मिश्र गुणस्थान - इस गुणस्थान में व्यक्ति संशयावस्था में रहता है। “इस अवस्था में वह सत्य और असत्य के मध्य झूलता रहता है, अर्थात् वासनात्मक जीवन और " जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन – डॉ. सागरमल जैन, पृ. 455 13 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - डॉ. सागरमल जैन, पृ. 455 14 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - डॉ. सागरमल जैन, पृ. 457 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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