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________________ 56 इसी प्रकार यदि परिवार का एक सदस्य भी दुष्ट प्रवृत्ति करता है, स्वार्थ--साधन के साथ उस समूह में रहता है तो वह स्वयं तो तनावग्रस्त रहता ही है, साथ-ही-साथ सम्पूर्ण परिवार को भी तनावग्रस्त कर देता है। जैनदर्शन के अनुसार परिवार का संतुलन बना रहे, वह तनावमुक्त रहे इसके लिए आवश्यकता है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य में पारस्परिक सहयोग की वृत्ति बनी रहे और परिवार का प्रत्येक सदस्य उन दुष्प्रवृत्तियों या वैयक्तिक स्वार्थ-साधन की प्रवृत्तियों से दूर रहे, जो समूह में तनाव उत्पन्न करती हैं और परिवार की शांति को भंग करती हैं। क्योंकि जैनदर्शन के अनुसार वे सभी बातें जो पारिवारिक हित के विरूद्ध कार्य करती हैं, अनैतिक भी होती हैं। परिवार में तनाव के कारण - डॉ. बच्छराजजी दूगड़ ने पारिवारिक अशांति के कारणों को दो भागों में विभाजित किया है – वैयक्तिक एवं अवैयक्तिक ।" वैयक्तिक कारण उन्हें कहते हैं, जिसमें परिवार के सदस्यों के स्वभाव, विचार आदि में भिन्नता होने से परिवार में विरोध उत्पन्न होता है या मतभेद होता है और जिससे परिवार तनावग्रस्त होता है। जैनदर्शन के अनुसार पारिवारिक सदस्यों की प्रवृत्तियों में विरोध के परिणामस्वरूप उनमें तनाव इतना बढ़ जाता है कि उनका एकसाथ रहना असहनीय हो जाता है। . हार्नेल तथा हार्ट ने परिवार में पति-पत्नी के सम्बन्ध को लेकर यह समझाने का प्रयत्न किया है कि -"दोनों के बीच यौन सम्बन्ध तथा बच्चे का जन्म और पालन-पोषण के अतिरिक्त भी विवाह कोई अन्य व्यवस्था भी है। जहां पारस्परिक समर्पण एवं त्याग का भाव है। परिवार के संदर्भ में विवाह दो व्यक्तियों का ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें दोनों की आदतें, मित्रता, सम्पत्ति, लक्ष्य, प्रवृत्तियाँ और उनमें निहित शक्तियाँ आदि के विविध तत्त्व निहित होते हैं। जब 21 पारिवारिक शांति और अनेकान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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