SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसके सोचने-समझने की क्षमता को समाप्त कर देती है। उसके मानसिक संतुलन को बिगाड़ देती है । कषाय व्यक्ति की सुख-शांति की जिन्दगी में तूफान की तरह आते हैं और उसे तनावग्रस्तता रूपी गड्ढे में गिरा देते हैं। कषाय के सम्बन्ध से ही जीव कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है 8 और उसी के सम्बन्ध से व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में तनाव उत्पन्न करता है । कर्म बंध की स्थिति व अनुभाग ( तीव्रता ) कषाय के आश्रित हैं, क्योंकि कषाय की तीव्रता-मन्दता पर ही स्थिति बंध और अनुभाग बंध की अल्पाधिकता अवलम्बित है। 79 कषाय की ही तीव्रता व मन्दता के आधार पर तनाव भी घटता-बढ़ता रहता है। क्योंकि जितना तीव्र क्रोध होगा उतना मानसिक संतुलन बिगड़ता जाता है। लोभी प्रतिक्षण कुछ प्राप्ति की इच्छा रखता है । इच्छा से तनाव उत्पन्न होता है, क्योंकि इच्छा आकाश के समान अनंत है, उसकी पूर्ति असम्भव है। उसकी जितनी पूर्ति होती है, लालसा उतनी ही बढ़ती जाती है। वह अपनी लालसाओं की पूर्ति एवं मान-सम्मान के लिए सदैव षड़यंत्र रचता रहता है और इस प्रकार व्यक्ति एक क्षण के लिए भी मानसिक शांति का अनुभव नहीं कर सकता । तत्वार्थसूत्र में कर्मबंध के हेतुओ में कषाय का भी समावेश किया गया है, किन्तु प्रश्न यह उठता है कि कषाय का सम्बंध आठ कर्मों में से किससे है। इसका उत्तर भी हमें तत्वार्थसूत्र के ही बंध तत्त्व नामक आठवें अध्याय के दसवें सूत्र में मिलता है 180_ दर्शनचारित्र मोहनीय कषायनो, कषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्धि षोडशनव भेदाः सम्यक्त्व मिध्यात्वतदुभे यानि कषायनो कषायावनन्तानुबन्धय-प्रत्याख्यान प्रत्याख्यानावरणं संज्वलनकिल्पाश्चैकशः क्रोधमानमाय लोभा शस्यख्यरतिशोक भय जुगुप्सास्त्रीपुनपुसकवेदाः । । 10 ।। 78 अकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलनादत्ते, -तत्त्वार्थ सूत्र पं. सुखलाल संघवी पृ. 115 " तत्वार्थ सूत्र टीका 80 तत्वार्थ सूत्र अध्याय - 8 / 10 Jain Education International 36 — 'For Personal & Private Use Only अध्याय 8/2 www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy