SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य का मन इतना कोमल और नाजुक है, कि वह थोड़ी भी प्रतिकूल स्थिति को सह नहीं सकता, वह टूट जाता है, तनावग्रस्त हो जाता है। इस दुर्बल मन को लाल रंग के ध्यान से शक्तिशाली मन के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। शक्तिशाली मन हर परिस्थिति में घबराता नहीं है, अपितु स्वयं के मनोबल को और मजबूत करता है । तनावपूर्ण स्थिति में भी स्वयं को तनावमुक्त बनाने का प्रयास करता हैं और जिसमें वह सफल भी होता है। डॉ. शांता जैन के विचार हैं कि यदि जड़ता, अवसाद, भय, उदासी की भावनाओं पर नियंत्रण करना हो; वासनाओं और इच्छाओं पर विजय पानी हो, घृणा, क्रोध, स्वार्थता, लालच, निर्दयता, मारकाट की प्रवृत्ति आदि निषेधात्मक वृत्तियों, जो तनाव के हेतु हैं, से मुक्त होना हो तो लाल रंग का ध्यान करना उपयोगी रहता है | 128 उपर्युक्त सभी प्रवृत्तियाँ तनाव उत्पन्न करने वाली हैं, इन वृत्तियों से मुक्ति तनावमुक्ति है। पीला रंग पदम् लेश्या का रंग पीला है। पीला रंग उच्च बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। आभामण्डल में पीतवर्ण की प्रधानता हो तो माना जा सकता है कि वह व्यक्ति अल्प कषाय वाला, प्रशान्त चित्त व तनावमुक्त और आत्म संयम करनेवाला है। व्यक्ति को लाल रंग का ध्यान करते-करते पीले वर्ण पर आना होगा और पीले रंग का ध्यान करते-करते श्वेत रंग तक का सफर तय करना होगा। पीला रंग शांत चित्त के लिए है और जब चित्त शांत होगा तो पूर्णतः शांति के लिए पीले रंग को हल्का करते हुए श्वेत रंग के ध्यान की अवस्था में पहुँच जाएगा। "पीला रंग बुद्धि और दर्शन का रंग है, तर्क का नहीं। इससे मानसिक कमजोरी, उदासीनता आदि दूर होते हैं ।"129 यह प्रसन्नता और आनन्द का सूचक रंग है। 340 - 128 लेश्या और मनोविज्ञान शांता जैन, पृ. 202 129 प्रेक्षा ध्यान : लेश्या ध्यान - आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 21 Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy